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चित्रकूट दर्शन

राम_घाट

चित्रकूट, “अनेक आश्चर्यों की पहाड़ियां”  वास्तव में प्रकृति और देवताओं द्वारा प्रदत्त एक अद्वितीय उपहार है, जो उत्तर प्रदेश में पयस्वनी/मन्दाकिनी नदी के किनारे विन्ध्य के उत्तरार्द्ध में स्थित एक शांत क्षेत्र है। ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से चित्रकूट महत्वपूर्ण जनपद है। चित्रकूट दो शब्दों के मेल से बना है। संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक एवं कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। इस वन क्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत मिलते थे।

यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैली उत्तरी विंध्य श्रृंखला में स्थित है।

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पौराणिक मान्यता है  कि इस स्थान पर अपने वनवास काल के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी का लगभग साढ़े ग्यारह वर्ष निवास स्थल रहा है। उनके नामों में से एक भगवान कामतानाथ, न केवल कामदगिरी पर्वत के बल्कि पूरे चित्रकूट के प्रमुख देवता है। धार्मिक मान्यता है कि सभी पवित्र स्थान (अर्थात् तीर्थ) इस परिक्रमा स्थल में स्थित हैं। यहाँ का बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना जनपद में शामिल है। यहाँ प्रयुक्त “चित्रकूट” शब्द, इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों और स्थलों की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत का प्रतीक है।

प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा के लिए एकत्र होते है। सोमवती अमावस्या, भाद्रपद अमावस्या, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति और राम नवमी यहाँ ऐसे समारोहों के विशेष अवसर हैं।

चित्रकूट चिंता हरण आये सुरभि के चैन।
पाप कटै युग चार के देख कामता नैन।।

भावार्थ:- भगवान राम जब वनवास काट कर चित्रकूट से जाने लगे थे तब चित्रकूट पर्वत (कामदगिरि) को वरदान दिया था कि उसके अवलोकन मात्र से भक्त के कष्टों का हरण तथा इच्छाओं की पूर्ति होगी। कामदगिरि वह पर्वत है जिसके दर्शन मात्र से सभी कामनाएं पूरी होती हैं। विपदा पड़ने पर लोग इस पवित्र स्थल पर आते हैं।  मुग़लकालीन कवि  रहीमदास ने भी इसका वर्णन निम्नवत किया है ।

चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश ।
जा पर विपदा परत है तोऊ आवत यह देश ।।

प्राचीन इतिहास 

चित्रकूट सभी तीर्थों का तीर्थ है

चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।

प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है। हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की है और अपनी तपस्या, साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है।

भगवान ब्रम्हा के पुत्र महर्षि अत्री, माता अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सारभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपना संपूर्ण जीवन यहाँ व्यतीत किया। जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक ऋषिगण लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं। चित्रकूट को गौरव प्रदान करने वाली मंदाकनी नदी भी माता अनसुइया के तपोबल से अनुसुइया आश्रम से उद्गम है जो जनपद मुख्यालय होते हुये  महाकवि तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर के यमुना नदी में समाहित होती है।

पौराणिक काल से ही चित्रकूट का एक विशिष्ट नाम और पहचान है।इस स्थान का पहला ज्ञात उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है, जो पहले सबसे पहले कवि द्वारा रचित सबसे पहला महाकाव्य माना जाता है। एक अलिखित संरचना के रूप में, विकास के इस महाकाव्य को, पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परंपरा द्वारा, सौंप दिया गया था। जैसा कि वाल्मीकि, जो राम के समकालीन (या उनसे पहले) माने जाते हैं, और मान्यता है कि उन्होंने राम के जन्म से पहले रामायण का निर्माण किया गया था, से इस स्थान की प्रसिद्धि व पुरातनता को अच्छी तरह से निरूपित किया जा सकता है। महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को एक महान पवित्र स्थान के रूप में चित्रित करते हैं, जो महान ऋषियों द्वारा बसाया गया है और जहाँ बंदर, भालू और अन्य विभिन्न प्रकार के पशुवर्ग और वनस्पतियां पाई जाती हैं।

महर्षि भारद्वाज और वाल्मीकि दोनों इस क्षेत्र के बारे में प्रशंसित शब्दों में बोलते हैं और श्रीराम को अपने वनवास की अवधि में इसे अपना निवास बनाने के लिए सलाह देते हैं, क्योंकि यह स्थान किसी व्यक्ति की सभी इच्छाओं पूर्ण करने और उसे मानसिक शांति देने में सक्षम था। जिससे वह अपने जीवन में सर्वोच्च लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।

प्रकृति ने इस क्षेत्र को बहुत उदारतापूर्वक अपने सभी उपहार प्रदान किये हैं, जो इसे दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम बनाता है।  इस प्रकार इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुगंध है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है।

हिंदू आस्था के अनुसार, प्रयागराज (आधुनिक नाम- इलाहाबाद) को सभी तीर्थों का राजा माना गया है; किन्तु चित्रकूट को उससे भी ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। किवदंती है की जब अन्य तीर्थों की तरह चित्रकूट प्रयागराज नहीं पहुंचे तब प्रयागराज को चित्रकूट की उच्चतर पदवी के बारे में बताया गया तथा प्रयागराज से अपेक्षा की गयी की वह चित्रकूट जाएँ, इसके विपरीत की चित्रकूट यहाँ आयें। ऐसी भी मान्यता है कि प्रयागराज प्रत्येक वर्ष मंदाकनी नदी में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए आते हैं।

भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक भगवान राम, माता सीता तथा श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा । किवदंती है, कि त्रेता युग में जब भगवान श्री रामचंद्र जी वनवास काल के दौरान चित्रकूट में रहने के लिए आये, तो उन्होंने रहने से पहले महाराजाधिराज श्री मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी जी से आज्ञा ली, इसके बाद ही उन्होंने 11 वर्ष यहाँ व्यतीत किये। मान्यता है, कि त्रेता युग में भगवान श्री रामचंद्रजी के वनवास काल के बाद महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ के सती अनुसुइया आश्रम जंगल में रहे थे।

यह भी कहा जाता है कि जब प्रभु राम ने अपने पिता का श्राद्ध समारोह किया तो सभी देवी-देवता शुद्धि भोज (परिवार में किसी की मृत्यु के तेरहवें दिन सभी सम्बन्धियों और मित्रों को दिया जाने वाला भोज) में भाग लेने चित्रकूट आए। वे इस स्थान की सुंदरता से मोहित हो गए थे। भगवान राम की उपस्थिति में इसमें एक आध्यात्मिक आयाम जुड़ गया। इसलिए वे वापस प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं थे। कुलगुरु वशिष्ठ, भगवान राम की इच्छा के अनुसार रहने और रहने की उनकी इच्छा को समझते हुए विसर्जन (प्रस्थान) मंत्र को बोलना भूल गए।

इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने इस जगह को अपना स्थायी आवास बना लिया और वहां हमेशा उपस्थित रहते हैं। आज भी, यहां तक कि जब एक अकेला पर्यटक भी प्राचीन चट्टानों, गुफाओं, आश्रमों और मंदिरों की विपुल छटा बिखेरे हुए इस स्थान में पहुंचता है तो पवित्र और आध्यात्मिक साधना में लगे ऋषियों के साथ वह अनजाने में ही खुद को पवित्र संस्कारों और ज्ञानप्राप्ति के उपदेशों और कृतियों से भरे माहौल में खो जाता है और एक अलग दुनिया के आनंद को प्राप्त करता है। विश्व के सभी हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री और सत्य के साधक इस स्थान में अपने जीवन को सुधारने और उन्नत करने की एक अदम्य इच्छा से प्रेरित होकर आश्रय लेते हैं।

पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री पयस्वनी/मन्दाकिनी में डुबकी लेकर और कामदगिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत होता है।

राम से संबंधित संपूर्ण भारतीय साहित्य में इस स्थान को अद्वितीय गौरव दिया गया है।

भगवान राम
 स्वयं इस जगह के मोहक प्रभाव को मानते हैं।

रामोपाख्यान’ और ‘महाभारत’ के विभिन्न स्थानों पर तीर्थों के विवरण में चित्रकूट एक को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

यह ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘बृहत् रामायण’ चित्रकूट की झकझोर कर देने वाली आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता को प्रमाणित करते हैं। लेखकों के अनुसार बाद में चित्रकूट और इसके प्रमुख स्थानों का वर्णन सोलह कंटो में वर्णित है। राम से संबंधित पूरे भारतीय साहित्य में इस स्थान को एक अद्वितीय गौरव प्रदान किया गया है।

हिंदी संत-कवि तुलसीदास जी ने अपनी सभी प्रमुख कृतियों- रामचरित मानस, कवितावली, दोहावली और विनय पत्रिका में इस स्थान का बहुत सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है।

अंतिम पाठ में कई छंद हैं, जो तुलसीदास और चित्रकूट के बीच गहरे व्यक्तिगत संबंध को प्रदर्शित करते हैं। अपने जीवन का काफी हिस्सा उन्होंने यहाँ भगवन राम की पूजा और उनके दर्शन की लालसा में व्यतीत किया। यहाँ उनकी उपलब्धियों का एक उल्लेखनीय पल माना जाता है जब हनुमान जी की मध्यस्थता में उन्हें उनके आराध्य प्रभु राम के दर्शन प्राप्त हुए। उनके मित्र, प्रसिद्ध हिंदी कवि रहीम (अब्दुर रहीम खान ए खाना, सैनिक, राजनीतिज्ञ, संत, विद्वान, कवि, जो अकबर के नव-रत्नों में से एक थे ) ने यहां कुछ समय बिताया था जब वह अकबर के पुत्र सम्राट जहांगीर के पक्ष में थे।

महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ में इस स्थान का सुंदर वर्णन किया है। वह यहाँ के आकर्षण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने मेघदूत में अपने यक्ष के निर्वासन का स्थान चित्रकूट (जिसे वह प्रभु राम के साथ इसके सम्मानित संबंधों की वजह से रामगिरी कहते हैं) को बनाया।

प्रणामी संप्रदाय के बीटक साहित्य के अनुसार, संत कवि महामति प्रणनाथ ने यहां अपनी दो पुस्तकों- छोटा कयामतनामा नामा और बड़ा कयामतनामा को लिखा था। वह वास्तविक स्थान, जहाँ प्राणनाथ रहे और जहाँ उन्होंने कुरान की व्याख्या और श्रीमद्भागवत महापुराण से इसकी समानताओं से सम्बंधित कार्य किये, का सही पता नहीं लगाया जा सका है।

फादर कामिल बुल्के ने मैकेंजी के संग्रह में मिले ‘चित्रकूट-महात्म्य’ का भी उल्लेख किया है।

महामुनि वाल्मीकिजी से संबंधित 

एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए। बचन सप्रेम राम मन भाए।।
कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक। आश्रम कहउँ समय सुखदायक।।

भावार्थ:- इस प्रकार मुनि श्रेष्ठ वाल्मीकिजी ने श्री रामचन्द्रजी को घर दिखाए। उनके प्रेमपूर्ण वचन श्री रामजी के मन को अच्छे लगे। फिर मुनि ने कहा- हे सूर्यकुल के स्वामी! सुनिए, अब मैं इस समय के लिए सुखदायक आश्रम कहता हूँ , निवास स्थान बतलाता हूँ।


चित्रकूट गिरि करहु निवासू। तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू।।
सैलु सुहावन कानन चारू। करि केहरि मृग बिहग बिहारू।।

भावार्थ:- आप चित्रकूट पर्वत पर निवास कीजिए, वहाँ आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है। सुहावना पर्वत है और सुंदर वन है। वह हाथी, सिंह, हिरन और पक्षियों का विहार स्थल है।


नदी पुनीत पुरान बखानी। अत्रिप्रिया निज तपबल आनी।।
सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि। जो सब पातक पोतक डाकिनि।।

भावार्थ:- वहाँ पवित्र नदी है, जिसकी पुराणों ने प्रशंसा की है और जिसको अत्रि ऋषि की पत्नी अनसुयाजी अपने तपोबल से लाई थीं। वह गंगाजी की धारा है, उसका मंदाकिनी नाम है। वह सब पाप रूपी बालकों को खा डालने के लिए डाकिनी (डायन) रूप है।


अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं। करहिं जोग जप तप तन कसहीं।।
चलहु सफल श्रम सब कर करहू। राम देहु गौरव गिरिबरहू।।

भावार्थ:- अत्रि आदि बहुत से श्रेष्ठ मुनि वहाँ निवास करते हैं, जो योग, जप और तप करते हुए शरीर को कसते हैं। हे रामजी! चलिए, सबके परिश्रम को सफल कीजिए और पर्वत श्रेष्ठ चित्रकूट को भी गौरव दीजिए।


चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ॥

 भावार्थ:- महामुनि वाल्मीकिजी ने चित्रकूट की अपरिमित महिमा बखान कर कही। तब सीताजी सहित दोनों भाइयों ने आकर श्रेष्ठ नदी मंदाकिनी में स्नान किया॥


मंदाकिनी मैय्या  से संबंधित

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू॥
लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा॥

 भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी ने कहा- लक्ष्मण! बड़ा अच्छा घाट है। अब यहीं कहीं ठहरने की व्यवस्था करो। तब लक्ष्मणजी ने पयस्विनी नदी के उत्तर के ऊँचे किनारे को देखा (और कहा कि-) इसके चारों ओर धनुष के जैसा एक नारा  फिरा हुआ है॥


नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना॥
चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी॥

भावार्थ:- नदी (मंदाकिनी) उस धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण हैं। कलियुग के समस्त पाप उसके अनेक हिंसक पशु (रूप निशाने) हैं। चित्रकूट ही मानो अचल शिकारी है, जिसका निशाना कभी चूकता नहीं और जो सामने से मारता है॥


चित्रकूट निवास से संबंधित

अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा॥
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना॥

भावार्थ:- ऐसा कहकर लक्ष्मणजी ने स्थान दिखाया। स्थान को देखकर श्री रामचन्द्रजी ने सुख पाया। जब देवताओं ने जाना कि श्री रामचन्द्रजी का मन यहाँ रम गया, तब वे देवताओं के प्रधान थवई (मकान बनाने वाले) विश्वकर्मा को साथ लेकर चले॥


कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए॥
बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला॥

भावार्थ:- सब देवता कोल-भीलों के वेष में आए और उन्होंने (दिव्य) पत्तों और घासों के सुंदर घर बना दिए। दो ऐसी सुंदर कुटिया बनाईं जिनका वर्णन नहीं हो सकता। उनमें एक बड़ी सुंदर छोटी सी थी और दूसरी बड़ी थी॥


लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत।
सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत॥

भावार्थ:- लक्ष्मणजी और जानकीजी सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी सुंदर घास-पत्तों के घर में शोभायमान हैं। मानो कामदेव मुनि का वेष धारण करके पत्नी रति और वसंत ऋतु के साथ सुशोभित हो॥


चित्रकूट आगमन से संबंधित

अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला॥
राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू॥

भावार्थ:- उस समय देवता, नाग, किन्नर और दिक्पाल चित्रकूट में आए और श्री रामचन्द्रजी ने सब किसी को प्रणाम किया। देवता नेत्रों का लाभ पाकर आनंदित हुए॥


बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू॥
करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए॥

भावार्थ:- फूलों की वर्षा करके देव समाज ने कहा- हे नाथ! आज (आपका दर्शन पाकर) हम सनाथ हो गए। फिर विनती करके उन्होंने अपने दुःसह दुःख सुनाए और (दुःखों के नाश का आश्वासन पाकर) हर्षित होकर अपने-अपने स्थानों को चले गए॥


चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए॥
आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा॥

भावार्थ:- श्री रघुनाथजी चित्रकूट में आ बसे हैं, यह समाचार सुन-सुनकर बहुत से मुनि आए। रघुकुल के चन्द्रमा श्री रामचन्द्रजी ने मुदित हुई मुनि मंडली को आते देखकर दंडवत प्रणाम किया॥


मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं॥
सिय सौमित्रि राम छबि देखहिं।साधन सकल सफल करि लेखहिं॥

भावार्थ:- मुनिगण श्री रामजी को हृदय से लगा लेते हैं और सफल होने के लिए आशीर्वाद देते हैं। वे सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी की छबि देखते हैं और अपने सारे साधनों को सफल हुआ समझते हैं॥


जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य सम्मान करके मुनि मंडली को विदा किया। (श्री रामचन्द्रजी के आ जाने से) वे सब अपने-अपने आश्रमों में अब स्वतंत्रता के साथ योग, जप, यज्ञ और तप करने लगे॥


चित्रकूट शुभागमन पर कोल-भीलों  द्वारा स्वागत

यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई॥
कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना॥

भावार्थ:- यह (श्री रामजी के आगमन का) समाचार जब कोल-भीलों ने पाया, तो वे ऐसे हर्षित हुए मानो नवों निधियाँ उनके घर ही पर आ गई हों। वे दोनों में कंद, मूल, फल भर-भरकर चले, मानो दरिद्र सोना लूटने चले हों॥


तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहिं मगु जाता॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई॥

भावार्थ:- उनमें से जो दोनों भाइयों को (पहले) देख चुके थे, उनसे दूसरे लोग रास्ते में जाते हुए पूछते हैं। इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी की सुंदरता कहते-सुनते सबने आकर श्री रघुनाथजी के दर्शन किए॥


करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े॥

भावार्थ:भेंट आगे रखकर वे लोग जोहार करते हैं और अत्यन्त अनुराग के साथ प्रभु को देखते हैं। वे मुग्ध हुए जहाँ के तहाँ मानो चित्र लिखे से खड़े हैं। उनके शरीर पुलकित हैं और नेत्रों में प्रेमाश्रुओं के जल की बाढ़ आ रही है॥


राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिंकर जोरी॥

भावार्थ:- श्री रामजी ने उन सबको प्रेम में मग्न जाना और प्रिय वचन कहकर सबका सम्मान किया। वे बार-बार प्रभु श्री रामचन्द्रजी को जोहार करते हुए हाथ जोड़कर विनीत वचन कहते है॥


अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय।
भाग हमारें आगमनु राउर कोसलराय॥

भावार्थ:- हे नाथ! प्रभु (आप) के चरणों का दर्शन पाकर अब हम सब सनाथ हो गए। हे कोसलराज! हमारे ही भाग्य से आपका यहाँ शुभागमन हुआ है॥


धन्य भूमि बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा॥
धन्य बिहग मृग काननचारी। सफल जनम भए तुम्हहि निहारी॥

भावार्थ:- हे नाथ! जहाँ-जहाँ आपने अपने चरण रखे हैं, वे पृथ्वी, वन, मार्ग और पहाड़ धन्य हैं, वे वन में विचरने वाले पक्षी और पशु धन्य हैं, जो आपको देखकर सफल जन्म हो गए॥


हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा॥
कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी। इहाँ सकल रितु रहब सुखारी॥

भावार्थ:- हम सब भी अपने परिवार सहित धन्य हैं, जिन्होंने नेत्र भरकर आपका दर्शन किया। आपने बड़ी अच्छी जगह विचारकर निवास किया है। यहाँ सभी ऋतुओं में आप सुखी रहिएगा॥


हम सब भाँति करब सेवकाई। करि केहरि अहि बाघ बराई॥
बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा। सब हमार प्रभु पग पग जोहा॥

भावार्थ:- हम लोग सब प्रकार से हाथी, सिंह, सर्प और बाघों से बचाकर आपकी सेवा करेंगे। हे प्रभो! यहाँ के बीहड़ वन, पहाड़, गुफाएँ और खोह (दर्रे) सब पग-पग हमारे देखे हुए हैं॥


तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब। सर निरझर जलठाउँ देखाउब॥
हम सेवक परिवार समेता। नाथ न सकुचब आयसु देता॥

भावार्थ:- हम वहाँ-वहाँ (उन-उन स्थानों में) आपको शिकार खिलाएँगे और तालाब, झरने आदि जलाशयों को दिखाएँगे। हम कुटुम्ब समेत आपके सेवक हैं। हे नाथ! इसलिए हमें आज्ञा देने में संकोच न कीजिए॥


बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन।
बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन॥

भावार्थ:- जो वेदों के वचन और मुनियों के मन को भी अगम हैं, वे करुणा के धाम प्रभु श्री रामचन्द्रजी भीलों के वचन इस तरह सुन रहे हैं, जैसे पिता बालकों के वचन सुनता है॥


रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जान निहारा॥
राम सकल बनचर तब तोषे। कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे॥

भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी को केवल प्रेम प्यारा है, जो जानने वाला हो (जानना चाहता हो), वह जान ले। तब श्री रामचन्द्रजी ने प्रेम से परिपुष्ट हुए (प्रेमपूर्ण) कोमल वचन कहकर उन सब वन में विचरण करने वाले लोगों को संतुष्ट किया॥


बिदा किए सिर नाइ सिधाए। प्रभु गुन कहत सुनत घर आए॥
एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई। बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई॥

भावार्थ:- फिर उनको विदा किया। वे सिर नवाकर चले और प्रभु के गुण कहते-सुनते घर आए। इस प्रकार देवता और मुनियों को सुख देने वाले दोनों भाई सीताजी समेत वन में निवास करने लगे॥


रघुनाथजी वन आगमन का प्रभाव

जब तें आइ रहे रघुनायकु। तब तें भयउ बनु मंगलदायकु॥
फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना। मंजु बलित बर बेलि बिताना॥

भावार्थ:- जब से श्री रघुनाथजी वन में आकर रहे तब से वन मंगलदायक हो गया। अनेक प्रकार के वृक्ष फूलते और फलते हैं और उन पर लिपटी हुई सुंदर बेलों के मंडप तने हैं॥


सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए॥
गुंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी॥

भावार्थ:- वे कल्पवृक्ष के समान स्वाभाविक ही सुंदर हैं। मानो वे देवताओं के वन (नंदन वन) को छोड़कर आए हों। भौंरों की पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर गुंजार करती हैं और सुख देने वाली शीतल, मंद, सुगंधित हवा चलती रहती है॥


नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर॥

भावार्थ:- नीलकंठ, कोयल, तोते, पपीहे, चकवे और चकोर आदि पक्षी कानों को सुख देने वाली और चित्त को चुराने वाली तरह-तरह की बोलियाँ बोलते हैं॥


करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा॥
फिरत अहेर राम छबि देखी।होहिं मुदित मृग बृंद बिसेषी॥

भावार्थ:- हाथी, सिंह, बंदर, सूअर और हिरन, ये सब वैर छोड़कर साथ-साथ विचरते हैं। शिकार के लिए फिरते हुए श्री रामचन्द्रजी की छबि को देखकर पशुओं के समूह विशेष आनंदित होते हैं॥


बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि रामबनु सकल सिहाहीं॥
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या॥

भावार्थ:- जगत में जहाँ तक (जितने) देवताओं के वन हैं, सब श्री रामजी के वन को देखकर सिहाते हैं, गंगा, सरस्वती, सूर्यकुमारी यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि धन्य (पुण्यमयी) नदियाँ,॥


सब सर सिंधु नदीं नद नाना। मंदाकिनि कर करहिं बखाना॥
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मंदर मेरु सकल सुरबासू॥

भावार्थ:- सारे तालाब, समुद्र, नदी और अनेकों नद सब मंदाकिनी की बड़ाई करते हैं। उदयाचल, अस्ताचल, कैलास, मंदराचल और सुमेरु आदि सब, जो देवताओं के रहने के स्थान हैं,॥


सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते॥
बिंधि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई॥

भावार्थ:- और हिमालय आदि जितने पर्वत हैं, सभी चित्रकूट का यश गाते हैं। विन्ध्याचल बड़ा आनंदित है, उसके मन में सुख समाता नहीं, क्योंकि उसने बिना परिश्रम ही बहुत बड़ी बड़ाई पा ली है॥


चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति।
पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति॥

भावार्थ:- चित्रकूट के पक्षी, पशु, बेल, वृक्ष, तृण-अंकुरादि की सभी जातियाँ पुण्य की राशि हैं और धन्य हैं- देवता दिन-रात ऐसा कहते हैं॥


नयनवंत रघुबरहि बिलोकी। पाइ जनम फल होहिं बिसोकी॥
परसि चरन रज अचर सुखारी। भए परम पद के अधिकारी॥

भावार्थ:- आँखों वाले जीव श्री रामचन्द्रजी को देखकर जन्म का फल पाकर शोकरहित हो जाते हैं और अचर (पर्वत, वृक्ष, भूमि, नदी आदि) भगवान की चरण रज का स्पर्श पाकर सुखी होते हैं। यों सभी परम पद (मोक्ष) के अधिकारी हो गए॥


सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन। मंगलमय अति पावन पावन॥
महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू। सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू॥

भावार्थ:- वह वन और पर्वत स्वाभाविक ही सुंदर, मंगलमय और अत्यन्त पवित्रों को भी पवित्र करने वाला है। उसकी महिमा किस प्रकार कही जाए, जहाँ सुख के समुद्र श्री रामजी ने निवास किया है॥


पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई॥
कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होहिं सहसानन॥

भावार्थ:- क्षीर सागर को त्यागकर और अयोध्या को छोड़कर जहाँ सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी आकर रहे, उस वन की जैसी परम शोभा है, उसको हजार मुख वाले जो लाख शेषजी हों तो वे भी नहीं कह सकते॥


सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं। डाबर कमठ कि मंदर लेहीं॥
सेवहिं लखनु करम मन बानी। जाइ न सीलु सनेहु बखानी॥

भावार्थ:- उसे भला, मैं किस प्रकार से वर्णन करके कह सकता हूँ। कहीं पोखरे का (क्षुद्र) कछुआ भी मंदराचल उठा सकता है? लक्ष्मणजी मन, वचन और कर्म से श्री रामचन्द्रजी की सेवा करते हैं। उनके शील और स्नेह का वर्णन नहीं किया जा सकता॥

मेले एवं त्यौहार:-

  • राष्ट्रीय रामायण मेला : फरवरी – मार्च
  • राम नवमी : मार्च – अप्रैल
  • श्रावण झूला : अगस्त
  • नवरात्रि : अक्टूबर – नवम्बर
  • विजयदशमी : अक्टूबर – नवम्बर
  • दीपावली में दीपदान : अक्टूबर – नवम्बर
  • अमावस्या : प्रत्येक मास

प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। ऐसी मान्यता है, कि सभी तीर्थ और प्रयागराज प्रत्येक महीनें की अमावस्या तिथि को मन्दाकिनी नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आते है। अमावस्या तिथि  पर यहाँ मेला लगता है और  दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान श्री कामदगिरि की परिक्रमा और दर्शन करने के लिए आते है। परिक्रमा करने से पहले श्रद्धालु माँ मन्दाकिनी नदी में डुबकी लगाते है, और रामघाट में मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित महाराजाधिराज श्री मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी जी की पूजा अर्चना करते है।

इसके अलावा यहाँ पर मकर सक्रांति, रामनवमी, सोमवती अमावस्या, महाशिवरात्रि , श्री कृष्णजन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा, दीपावली इत्यादि त्योहारों पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन बड़ी ही धूम-धाम के साथ किया जाता है।

सोमवती अमावस्या  

सोमवती-अमावस्या

 सावन माह – मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी 

mritrigayendra_bhagwan

 रामनवमी –  दीपोत्सव

रामनवमी-दीप-उत्सव

रेल मार्ग सुविधाएं 

मुख्य रेलवे स्टेशन कर्वी में स्थित है, यह रेलवे ट्रैक के साथ सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

निकटतम रेलवे स्टेशन –

  • चित्रकूट धाम, कर्वी -10 कि.मी.
  • बाँदा -70 कि.मी.
  • महोबा -127 कि.मी.
  • खजुराहो -185 कि.मी.
  • मानिकपुर -35 कि.मी.
  • प्रयागराज -127 कि.मी.

चित्रकूट से मुख्य रेल मार्ग निम्नानुसार है:

  • चित्रकूट से हज़रत निजामुद्दीन( वाया बाँदा )
  • चित्रकूट से लखनऊ  तक (वाया बाँदा)
  • चित्रकूट से इलाहाबाद, मुगल सराय, हावड़ा (वाया मानिकपुर )
  • चित्रकूट से वाराणसी (वाया मानिकपुर)
  • चित्रकूट से कुर्ला (मुंबई) (वाया झाँसी)

 सड़क मार्ग सुविधाएं 

चित्रकूट जिला राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य सड़क मार्ग सहित सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

  • बाँदा -70 कि.मी.
  • सतना -70 कि.मी.
  • कालिंजर – 88 कि.मी.
  • प्रयागराज -130 कि.मी.
  • महोबा -127 कि.मी.
  • खजुराहो -135 कि.मी.
  • झाँसी -274 कि.मी.
  • लखनऊ -285 कि.मी.

चित्रकूट से मुख्य सड़क मार्ग निम्नानुसार है:

  • चित्रकूट से लेकर मिर्जापुर तक (वाया इलाहाबाद)
  • चित्रकूट से बांदा, कानपुर और लखनऊ तक
  • चित्रकूट से राजापुर तक
  • चित्रकोट से  सागर तक (वाया महोबा)
  • चित्रकूट से पन्ना तक(वाया अत्तार्रा, नरैनी)

 वायु मार्ग  सुविधाएं 

चित्रकूट हवाई अड्डा से लखनऊ जिले हेतु उड़ान सेवाएं उपलब्ध है। यह शहर के केंद्र से 12 किमी दूर चित्रकूट के देवांगना में स्थित है।

इलाहाबाद में बमरौली हवाई अड्डा (106.1 कि.मी.) और खजुराहो हवाई अड्डा (167.7 कि.मी.) भी चित्रकूट से निकटतम हवाई अड्डे हैं। दोनों हवाई अड्डों से दिल्ली के लिए प्रतिदिन उड़ान सेवाएँ उपलब्ध हैं।

चित्रकूट  से अन्य  स्थलो  हेतु  यात्रा सुविधाएं   (सड़क मार्ग, रेल मार्ग  एवं वायु मार्ग द्वारा)

चित्रकूट_ट्रांसपोर्ट_मैप
क्रम  संख्या होटल का नाम पता दूरभाष कक्षों की संख्या
1 पर्यटक आवास गृह,चित्रकूट सीतापुर, चित्रकूट 05198298183 AC(28)
Non-AC(60)
2 श्री जी भवन सीतापुर ,चित्रकूट 7523914101 31
3 चन्द्रप्रभा भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9450224535 13
4 राममनोहर पटेल धर्मशाला सीतापुर ,चित्रकूट 8874552080 16
5 मन्दाकिनी सत्संग भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8090775166 19
6 बिन्दीराम होटल दिव्यांगविश्वविद्यालय के पास 6392353523 31
7 आनंद रिसोर्ट  दिव्यांगविश्वविद्यालय के पास 9807559740 22
8 कृष्णकुन्ज सत्संग भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9415975838 11
9 चित्रकूट गेस्ट हाउस सीतापुर ,चित्रकूट 9795088429 30
10 बिन्दी स्मृति भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8853447137 8
11 श्री जगदीश भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9919537100 8
12 रामायण मेला सीतापुर ,चित्रकूट 6394904236 13
13 श्यामा भवन सीतापुर ,चित्रकूट 7767847875 4
14 स्वर्णिमा होटल सीतापुर ,चित्रकूट 9839026254 10
15 जैपुरिया भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8004814901,7458030210
16 भागवत धाम रानीपुर, चित्रकूट 16
17 राधिका भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8004236399 22
18 वनवासी भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9721674008 17
19 रामा होटल सीतापुर ,चित्रकूट 9918159696 11
20 महेश्वरी भवन रामघाट चित्रकूट 9044161776 8
21 कृष्ण कुरीर रामघाट चित्रकूट 9450224389 8
22 दिव्या होटल रामघाट चित्रकूट 9918166809 8
23 विनोद लाॅज रामघाट चित्रकूट 7054990955 8
24 श्री सुरेन्द्र भवन रामघाट चित्रकूट 6264289798 32
25 सत्संग भवन रामघाट चित्रकूट 9335531217 8
26 राम भवन  रामघाट चित्रकूट 9918139696 3
27 श्री रामजी विश्रामगृह रामघाट चित्रकूट 9452759117 3
28 सीता भवन  रामघाट चित्रकूट 9918642062 11
29 अग्रसेन भवन रामघाट चित्रकूट 9451917259 7
30 आशा भवन रामघाट चित्रकूट 9935766194 7
31 दिव्या श्री भरत सत्संग भवन रामघाट चित्रकूट 9451433665 5
32 श्री गणेश भवन रामघाट चित्रकूट 9793422962 13
33 लक्ष्मी भवन   रामघाट चित्रकूट 9179303844 17
34 विजय राघव सदन  रामघाट चित्रकूट 9793428736 5
35 होटल पुष्पारेजेंसि रामघाट चित्रकूट 9450223090,9565009520 19

कामतानाथ-भगवन
कामतानाथ भगवान 

कामदगिरि-पर्वत की परिक्रमा चित्रकूट तीर्थ का प्रमुख आकर्षण है|  यहीं भरत मिलाप मंदिर स्थित है। तीर्थयात्री यहाँ भगवान कामदनाथ व भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कामदगिरी पहाड़ी की परिक्रमा करते हैं। मान्यता के अनुसार कामदगिरि व  कामतानाथ के दर्शन एवं परिक्रमा से मानव से समस्त मनोरथ पूर्ण होते है|

कामद भे गिरि राम प्रसादा। अवलोकत अपहरत बिषादा॥
सर सरिता बन भूमि बिभागा। जनु उमगत आनँद अनुरागा॥

भावार्थ:– श्री रामचन्द्रजी की कृपा से सब पर्वत मनचाही वस्तु देने वाले हो गए। वे देखने मात्र से ही दुःखों  को सर्वथा हर लेते थे। वहाँ के तालाबों, नदियों, वन और पृथ्वी के सभी भागों में मानो आनंद और प्रेम उमड़ रहा है।


लगभग 05 किमी की परिक्रमा उ.प्र. एवं म.प्र. का विभिन्न स्थानों का स्पर्श करती है| पूरे परिक्रमा-पथ में चार प्रमुख तीर्थ मंदिरों-प्राचीन मुखार विंद, भरत मिलाप, द्वितीय मुखार विंद, चौपडा मंदिर, बरहा के हनुमान जी एवं प्रमुख द्वार के साथ ही साथ अनेक छोटे बड़े मंदिरों के दर्शन होते है, यथा साक्षी गोपाल, लक्ष्मी नारायण, विजयी हनुमान जी, श्रीराम चरण पादुका आदि | मान्यतानुसार भगवान् श्रीराम ने वनवास के दौरान कामदगिरि-पर्वत पर निवास किया था| यहाँ प्रत्येक मास की अमावस्या को रामघाट पर स्नान एवं कामतानाथ की परिक्रमा हेतु लाखों श्रद्दालु एवं दर्शनार्थी पहुंचते है|  


Ramghat

राम घाट

चित्रकूट में ही प्रगटित मंदाकिनी नदी का यह प्रमुख घाट है ऐसा कहा जाता है गोस्वामी तुलसीदास अपने आराध्य प्रभु श्री राम के  दर्शन  हेतु  अयोध्या और काशी में वास किया, किन्तु  दर्शन चित्रकूट के रामघाट मे हुए वह भी तोता रूप में हनुमान जी की मदद से  यहां के लोगों के बीच प्रचलित है, कि राम घाट पर तुलसीदास जी दो बालकों को चंदन का तिलक लगा रहे थे।  इसी बीच तोता रूपी हनुमान जी ने ‘चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक देत रघुवीर ‘ चौपाई गढ़ी थी उनके मुख से यह चौपाई सुन तुलसीदास ने बालकों के रूप में खड़े भगवान राम और लक्ष्मण को पहचान लिया और भाव विभोर होकर अपने आराध्य के पैरों में गिर गए तब श्री राम और लक्ष्मण के साथ हनुमान जी ने वास्तविक रूप में तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक देत रघुवीर

रामघाट के ऊपर यज्ञवेदी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ब्रम्हा जी ने जब स्रष्टि की रचना की तब धरती पर यहाँ पहला यज्ञ किया था मन्दाकिनी नदी के किनारे स्थित यह घाट एक शांत तीर्थ स्थल है। इस नदी के किनारे इस स्थान को भगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण के साथ संत गोस्वामी तुलसीदास का साक्षात्कार स्थल माना जाता है। यह चित्रकूट के प्रमुख घाटों में से एक है जहाँ अध्यात्मिक व धार्मिक गतिविधियों के कारण भीड़ बनी रहती है। प्रातःकाल से यहाँ दर्शनार्थ जाया जा सकता है। नदी के किनारे पर रंगीन नौकाओं के सुंदर दृश्यों के साथ यहाँ सायंकाल होने वाली मंदाकिनी आरती के दर्शन का लाभ अवश्य प्राप्त करना चाहिए। आरती के पश्चात उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा मन्दाकिनी नदी के जल पर चलने वाला लेजर शो रामघाट के सौंदर्य को बढाता है, पानी पर दिखने वाले शो में एक घंटे में संपूर्ण रामायण दिखाई जाती है


Bharatkoop

भरत कूप
भरत कूप, भरतकूप गांव के निकट एक विशाल कुआं है जो चित्रकूट के पश्चिम में लगभग 20 किमी के दूर स्थित है। यह माना जाता है कि भगवान राम के भाई भरत ने भगवान राम को वापस अयोध्या के राजा के रूप में सम्मानित करने के लिए सभी पवित्र तीर्थों से जल एकत्र करके आये थे। भरत, भगवान राम को अपने राज्य में लौटने और राजा के रूप में अपनी जगह लेने के लिए मनाने में असफल रहे। तब भरत ने महर्षि अत्री के निर्देशों के अनुसार, वह पवित्र जल इस कुएं में डाल दिया। यह मान्यता है की यहाँ के जल से स्नान करने का अर्थ सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। यहाँ भगवान राम के परिवार को समर्पित एक मंदिर भी दर्शनीय है।


Bharatmilap

भरत मिलाप मंदिर

सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा॥
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी। सब सेवक गन गरहिं गलानी॥

भावार्थ:- मुझे उचित तो ऐसा है कि मैं सिर के बल चलकर जाऊँ। सेवक का धर्म सबसे कठिन होता है। भरतजी की दशा देखकर और कोमल वाणी सुनकर सब सेवकगण ग्लानि के मारे गले जा रहे हैं।


माना जाता है कि भरत मिलाप मंदिर उस जगह को चिह्नित करता है जहां भरत, अयोध्या के सिंहासन पर लौटने के लिए भगवान श्री राम को मनाने के लिए उनके वनवास के दौरान उनसे मिले थे। यह कहा जाता है कि चारों भाइयों का मिलन इतना मार्मिक था कि चित्रकूट की चट्टानें भी पिघल गयीं। भगवान राम और उनके भाइयों के इन चट्टानों पर छपे पैरों के निशान अब भी भरत मिलाप मंदिर में देखे जा सकते हैं।

Ganeshbagh

गणेश बाग
गणेश बाग  19 वीं शताब्दी में विनायक राज पेशवा द्वारा बनाया गया था ।  इस जगह में एक मन्दिर है, जो खजुराहो की कलाशैली जैसी शैली में निर्मित है। मूल खजुराहो के साथ इसकी वास्तुकला की समानता के कारण यह स्थान ‘मिनी खजुराहो’ के रूप में भी जाना जाता है। देवांगना मार्ग पर स्थित देश के प्राचीन गौरव तथा प्रसिद्ध के प्रतीक स्वरूप गणेश बाग पेशवा नरेशो की कीर्ति संजोए खड़ा है इसका निर्माण 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में श्रीमंत विनायक राव पेशवा ने अपने आमोद प्रमोद के लिए कराया था यहां की इमारतों का निर्माण भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है बीच में प्राचीन शैली का भव्य षटकोणी पंच मंदिर है जिस के ऊपरी भाग में भित्ति प्रस्तरों  की बारीक कटाई करके खजुराहो की भांति असंख्य मूर्तियां उत्कीर्ण की गई हैं सामने एक सरोवर है जिसमें इसकी शोभा और अधिक बढ़ जाती है पश्चिमी भाग में पांच खंडों की एक भव्य वापी है जिसमें कुएं और वापी का अद्भुत सामंजस्य है इस स्थल को मिनी खजुराहो भी कहा जाता है|


Hanumandhara

हनुमान धारा

सीतापुर से 05 किमी दूर एक ऊँची पहाड़ी पर  हनुमान जी का मंदिर है| मंदिर की ऊपरी पहाड़ी पर सीता रसोई तथा अन्य छोटे मंदिर है| हनुमान धारा मंदिर तक पहुचने हेतु लगभग 355 सीढियाँ है| यहाँ पर पर्वत -खंडो से निकली जल की निर्मल धारा हनुमान जी का अभिषेक करती रहती है|मंदिर तक पहुँचने के लिए कई खड़ी सीढियों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इन सीढियों पर चढ़ते समय चित्रकूट के शानदार दृश्य देखे जा सकते हैं। पूरे रास्ते में हनुमान जी की प्रार्थना योग्य अनेक छोटी मूर्तियां स्थित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी के लंका में आग लगा कर वापस लौटने पर इस मंदिर के अंदर भगवान राम, भगवान हनुमान के साथ रहे। यहां भगवान राम ने उनके गुस्से को शांत करने में उनकी मदद की। इस स्थान के आगे भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी को समर्पित कुछ और मंदिर हैं।


Guptgodavri

गुप्त गोदावरी
गुप्त गोदावरी चित्रकूट से 18 किलोमीटर दूर स्थित है। पौराणिक कथा है कि भगवान राम और लक्ष्मण अपने वनवास के कुछ समय के लिए यहां रहे। गुप्त गोदावरी एक गुफा के अंदर गुफा प्रणाली है, जहाँ घुटने तक उच्च जल स्तर रहता है। बड़ी गुफा में दो पत्थर के सिंहासन हैं जो राम और लक्ष्मण से संबंधित हैं। इन गुफाओं के बाहर स्मृति चिन्ह खरीदने के लिए दुकानें हैं।


सती-अनुसुइया-मंदिर

सती अनुसूया मंदिर 

एक बार महर्षि नारद भगवान शंकर, विष्णु और ब्रह्माजी से मिलने स्वर्ग लोग गए। किन्तु तीनों में से किसी से उनकी भेंट नहीं हो पाई। तीनों की धर्म–पत्नियां अपने–अपने लोक में अवश्य उपस्थित थीं। भेंट के दौरान महर्षि नारद ने यह अनुभव किया कि इन तीनों को ही अपने पतिव्रत धर्म, शील एवं सद्गुणों पर बड़ा गर्व है। अतः उन्होंने एक–एक के पास जाकर कहा, मैं विश्वभर का भ्रमण करता हूँ। किंतु अत्रि ऋषि की पत्नी समान पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नहीं देखी न ही सुनी। यह सुनकर पार्वती, लक्ष्मी और सावित्री को बड़ी ईर्ष्या हुई।

अब वे तीनों व्याकुलता से अपने पतियों के आने की प्रतीक्षा करने लगीं। अपने–अपने स्वामी के आगमन पर उन्होंने अपने पति से प्रार्थना की कि वे सती अनुसुइया का पतिधर्म भंग करें। अर्धांगिनियों के कहने पर तीनों देवता इस हेतु राजी हो गए। अब वे तीनों एक साथ अत्रि ऋषि के आश्रम में इस कार्य हेतु पहुँचे। पूर्णतः योजना बनाकर वे तीनों याचक के रूप में भिक्षा माँगने गए। जब अनुसुइया भिक्षा देने आई तो अतिथि सेवा में तत्पर अनुसुइया ने कहा, आप लोग गंगा स्नान करके आइये तब तक मैं भोजन तैयार करती हूँ। स्नान के बाद अनुसुइया ने उन्हें भोजन परोसा। तब तीनों देवता बोले हम भोजन नहीं करेंगे।

अब पतिव्रत धर्म का पालन करने के कारण उसे देवताओं का छल–कपट ज्ञात हो गया। फिर वे तीनों को बिठाकर अपने पति अत्रि ऋषि के पास गई और उनके चरण धोकर जल ले आई। उस जल को उन्होंने देवताओं पर छिड़क दिया। जल के प्रभाव से तीनों देवता दूध मुहे बच्चे बनकर बाल–क्रीड़ाएं करने लगे। तब अनुसूया ने उन तीनों को दूध पिलाकर पालने में सुला दिया। इस प्रकार कई दिन बीत गए। जब तीनों देवता लौटकर अपने लोक नहीं पहुँचे तो देव–पत्नियाँ चिन्तित हुईं। फिर एक दिन नारद जी से ही उन्हें ज्ञात हुआ कि वे अत्रि ऋषि के आश्रम के आसपास देखे गए हैं। अब तीनों देव पलियाँ अपने पति के विषय में सती अनुसुइया से पूछने लगीं तब अनुसुइया ने पालने की ओर संकेत किया और कहा पहचान लो। तीनों ही किसी भी प्रकार अपने पति को नहीं पहचान पाई तो हाथ जोड़कर अनुसुइया जी प्रार्थना करने लगीं हे देवी हमें अपने–अपने पति अलग–अलग प्रदान कीजिए। देवी अनुसूया बोली, इन्होंने मेरा दूध पिया है। अतः ये मेरे बच्चे हुए। अब इन्हें किसी न किसी रूप में मेरे पास ही रहना होगा।

 इस पर तीनों देवताओं के संयुक्त प्रयास से एक देवी तेज प्रकट हुआ जिसके तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। इसी अलौकिक अवतार का नाम “दत्तात्रेय” रखा गया। अनुसूया ने पुनः पति के चरण धोये और जल को देवताओं पर छिड़का तो वे अपने पूर्व रूप में आ गए।


Satianusuya

सती अनुसूया आश्रम
यह आश्रम ऋषि अत्री के विश्राम स्थान के रूप में जाना जाता है। अत्री ने अपनी भक्त पत्नी अनुसूया के साथ यहां ध्यान किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार वनवास के समय भगवान राम और माता सीता इस आश्रम में सती अनुसूया के पास गए थे। सती अनसूया ने यहाँ माता सीता को शिक्षाएं दी थी। यहाँ एक रथ पर सवार भगवान कृष्ण की बड़ी सी मूर्ति है जिसमे अर्जुन पीछेबैठे हैं, जो महाभारत दृश्य को दर्शाती है। अंदर पवित्र दर्शन के लिए रखी अनेक मूर्तियां हैं।


Ramdarshan

राम दर्शन

यह स्थल 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां पर रामायण प्रसंग की अनेक वीथिकाएँ एवं फोटो प्रदर्शनी दर्शनीय है|

राम दर्शन मंदिर, एक अनोखा मंदिर है, जहां पूजा और प्रसाद निषिद्ध हैं। यह मंदिर लोगों को मूल्यवान नैतिक पाठ प्रदान करके अभिन्न मानवता में प्रवेश करने में मदद करता है। यह मंदिर सांस्कृतिक और मानवीय पहलुओं का एकीकरण है, जो कभी भी इस मंदिर में जाने पर मन में एक निशान छोड़ता है । मंदिर भगवान राम के जीवन और उनके अंतर-व्यक्तिगत संबंधों की जानकारी देता है। 


Sphatikshila

स्फटिक शिला

स्फटिक शिला एक छोटी सी चट्टान है, जो रामघाट से ऊपर की ओर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। यह ऐसा स्थान माना जाता है जहां माता सीता ने श्रृंगार किया था। इसके अलावा, किंवदंती यह है कि यह वह जगह है जहां भगवान इंद्र के बेटे जयंत, एक कौवा के रूप में माता सीता के पैर में चोंच मारी थी। ऐसा कहा जाता है कि इस चट्टान में अभी भी राम के पैर की छाप है।



मत्यगयेंद्रनाथ-स्वामी

मत्यगयेंद्रनाथ स्वामी

धार्मिक नगरी चित्रकूट में मां मंदाकिनी के किनारे रामघाट पर प्राचीन मत्यगजेन्द्र नाथ शिव मंदिर है । मंदिर का इतिहास चार युग पुराना है। शिवपुराण के अष्टम खंड के दूसरे अध्याय मे मत्यगजेन्द्रनाथ भगवान के बारे में वर्णन है।  मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने हाथ से की थी। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था। यज्ञ के प्रभाव से निकले शिवलिंग को स्वामी मत्यगजेन्द्र नाथ के नाम से जाना जाता है।  ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की आज्ञा पर चित्रकूट के पवित्र पर्वत पर यज्ञ किया था, जिसमें शिवलिंग निकला। वही शिवलिंग मंदिर में स्थापित है। यहां जलाभिषेक करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जो मनुष्य प्रात: काल मंदाकिनी नदी में स्नान कर मत्यगजेन्द्र नाथ का पूजन करता है, उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं। भगवान शिव के स्वरूप मत्यगजेंद्र स्वामी को चित्रकूट का क्षेत्रपाल कहा जाता है, इसलिए बिना इनके दर्शन के चित्रकूट की यात्रा फलित नहीं होती है। त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम वनवास के लिए चित्रकूट आए तो मत्यगजेन्द्र नाथ स्वामी से आज्ञा लेकर चित्रकूट में साढ़े 11 वर्ष व्यतीत किए। भगवान श्रीराम मंदाकिनी नदी में स्नान करने के बाद तट पर विराजे भगवान शिव का जलाभिषेक करते थे। मंदिर में जलाभिषेक का विशेष महत्व है।       भगवान श्रीराम की वनवास स्थली चित्रकूट में शिवमंदिर अत्यंत मनोरम स्थान पर है। यहां आने वाले हर श्रद्धालु मत्यगजेन्द्रनाथ मंदिर में विराजे शिवलिंग के दर्शन करता है, लेकिन श्रावण माह में यहां दर्शन का महत्व और बढ़ जाता है। एक माह तक इस मंदिर में जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

 मान्यता है कि मत्यगयेंद्रनाथ के दर्शन से शोक-भय-अवसाद से मुक्ति मिलती है|


बाल्मीकि-आश्रम

महर्षि वाल्मीकि आश्रम

महर्षि वाल्मीकि ने प्रभु श्रीराम को चित्रकूट में अपना वनवास काल काटने का उपयुक्त स्थान बताया था। महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को पवित्र स्थान के रूप में चित्रित किया है। महान ऋषियों की तपोस्थली बताया है। यह स्थान सभी इच्छाओं को पूर्ण करने और मानसिक शांति देने वाला है।

महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली लालापुर चित्रकूट-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग में है। झुकेही से निकली तमसा नदी इस आश्रम के समीप से बहती हुई सिरसर के समीप यमुना में मिल जाती है। पूरी पहाडी पर अलंकृत स्तंभ और शीर्ष वाले प्रस्तर खंड बिखरे पडे हैं जिनसे इस स्थल की प्राचीनता का बोध होता है। यहां पर चंदेलकालीन आशांबरा देवी का मंदिर भी है। यहाँ भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए संस्कृत विद्यालय भी है। कहा जाता है कि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना यहीं पर की थी, जो कि संस्कृत भाषा का आदि काव्य माना जाता है वनवास के समय भगवान श्रीराम यहाँ आकर वाल्मीकि जी से अपने निवास के लिए स्थान पूंछा, तो श्री महर्षि जी ने चित्रकूट में रहने के लिए निर्देश किया था – जैसे श्री तुलसीदास जी ने मानस में कहा है-

चित्रकूट गिरि करहु निवासू।  तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू॥
सैलु सुहावन कानन चारू। करि केहरि मृग बिहग बिहारू॥

भावार्थ:- आप चित्रकूट पर्वत पर निवास कीजिए, वहाँ आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है। सुहावना पर्वत है और सुंदर वन है। वह हाथी, सिंह, हिरन और पक्षियों का विहार स्थल है।

चैत्र राम नवमी को यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है, जो 4-5 दिन तक चलता है।


बरहा_हनुमान_मंदिर

बरहा के हनुमान जी का मंदिर

कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में आपको बरहा के हनुमान जी का मंदिर भी देखने के लिए मिलेगा। इस मंदिर का भी पौराणिक महत्व है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि यहां की स्थापित मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है। 


 

JANKIKUND

जानकी कुंड

चित्रकूट  मैं मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है, जानकी कुंड हिंदुओं के लिए एक पूजनीय स्थल है क्योंकि इस स्थान पर हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है जहां इसे निर्वासन की अवधि के दौरान देवी सीता के पसंदीदा स्नान स्थल के रूप में वर्णित किया गया है। उसके पैरों के निशान भी यहां देखे जा सकते हैं। यहां पर आपको श्री रघुवीर जानकी मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर आपको फलाहारी आश्रम भी देखने के लिए मिलता है। जहां पर कहा जाता है कि संत लोग फल को ग्रहण करके राम भगवान जी की उपासना किया करते थे। जानकी कुंड आध्यात्मिकता के रंगों में मिश्रित एक शांत अनुभव प्रदान करता है और परिवार के साथ घूमने लायक एक बेहतरीन स्थान है।

जानकीकुंड नाम का बहुत ही प्रसिद्ध अस्पताल  भी है जहां पर दूर-दूर से लोग अपनी आंखों का इलाज कराने आते हैं।



dharkundi

धारकुंडी  

हिंदू धर्मग्रंथ महाकाव्य महाभारत के अनुसार ‘युधिष्ठिर और दक्ष’ का संवाद यहाँ के ही कुंड में हुआ था, आज इस कुंड को ‘अघमर्षण कुंड’ के नाम से जाना जाता है। यह कुंड श्री परमहंस आश्रम धारकुंडी के बीचों-बीच स्थित है। अघमर्षण कुंड भूतल से लगभग 100 मीटर नीचे है।

धारकुंडी नाम दो शब्दों “धार तथा कुंडी” से मिलकर बना है। जिसका मतलब होता है – ‘जल की धारा और जलकुंड’। विंध्याचल पर्वत शृंखला के 2 पहाड़ों के बीच से अविरल बहने वाली निर्मल जलधारा यहाँ पानी की कमी नही होने देती है, निरंतर बहने वाली इसी जलधारा की वजह से यहाँ पर जलकुंड बना है।

सतना से 70 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच स्थित धारकुंडी में अध्यात्म और प्रकृति का अनुपम मिलन देखने को मिलता है। सतपुड़ा पठार की विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित धारकुंडी का प्राकृतिक सौंदर्य और हरे भरे जंगल देख कर यहाँ से जाने का मन नही करता। इसी घने जंगल के बीच स्थित है धारकुंडी का प्रसिद्ध श्री परमहंस आश्रम जहाँ पर पर्वत की कंदराओं में महात्माओं के साधना स्थल, पहा़ड़ों के बीच से अनवरत बहती हुई जलधारा, दुर्लभ शैलचित्र, गहरी खाईयां हैं।

पूज्यनीय श्री महाराज सच्चिदानंद जी ने परमहंस आश्रम के माध्यम से इस स्थल को पर्यटन और अध्यात्मिकता के सूत्र में पिरो दिया है। धारकुंडी के घने जंगलों में कई जीवाश्म और बहुमूल्य औषधियां भी मिलती हैं। समुद्र तल से धारकुंडी की ऊँचाई 1050 फुट है। घने जंगलों के बीच होने से धारकुंडी आश्रम में कभी भी गर्मी का एहसास नही होता है। धारकुंडी आश्रम के योगिराज श्री स्वामी परमानंद परमहंस जी ने श्री सच्चिदानंद जी के सान्निध्य में चित्रकूट के अनुसूया आश्रम लगभग 11 वर्ष गहन साधना की थी।

इसके बाद श्री स्वामी परमानंद परमहंस जी 1956 में धारकुंडी आए थे और यहाँ के घने जंगलों के बीच शेर के साथ एक गुफा में निवास करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने आध्यात्मिक शक्ति के बल पर इस खूबसूरत प्राकृतिक स्थान में आध्यात्म और प्रकृति को एक करके सार्थक रूप दिया।

आध्यात्मिक लोग और प्रकृति प्रेमी प्रतिदिन यहाँ आते हैं। सतना शहर से धारकुंडी के लिए सीधी बस सिर्फ़ एक ही है। इसके अलावा अगर आप सतना से यहाँ आते हैं, तो पर्यटकों की मदद के लिए सतना बस स्टैंड के पास परमहंस आश्रम की शाखा भी है, जहाँ से यहाँ के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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लैना-बाबा

लाइना बाबा

भगवान श्रीराम के परम भक्त लाइना बाबा सरकार अपने भक्तों की कामनाओं की पूर्ति में देरी नहीं करते हैं। आस्था के इस मंदिर में जगह की कमी है। लोगों की भीड़ को देखते हुए पथरौडी गांव के भगवान सिंह व मलखान सिंह अपने खेत में कई वर्षो से फसल नहीं बोते हैं। उनकी जमीन खाली छोड़ी जाती है।

श्री लाइना बाबा मंदिर जो की हनुमान जी का मंदिर है | यह शिवरामपुर मे स्थित है जो चित्रकूट से 11 किलोमीटर की दूरी मे है |

यहाँ भक्तो की हमेशा भीड़ लगी रहती है, लोगो का मानना है कि यहा पर लोगो मन्नत पूरी होती है | समय समय पर यहा भंडारा और कीर्तन का आयोजन होता रहता है |

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मार्फा किला

मड़फा दुर्ग

मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है । यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।

भरतकूप मार्ग पर बरिया मानपुर के समीप दुर्ग एक पहाड़ी पर है। चन्देल शासन काल में इस दुर्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। तथा दुर्ग के भग्नावशेष यहाँ आज भी उपलब्ध होते है। सुरक्षा की दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व था। तथा यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य भी सराहनीय है। यह दुर्ग कालिंजर से 26 कि0०0मी0० दूर उत्तर पूर्व में है। यहाँ तक पहुँचने के लिए कच्चा रास्ता है तथा इसके थोडी दूर बघेलाबारी गाँव है।

इस दुर्ग में चढ़ने के लिए तीन रास्ते है। पहला मार्ग उत्तर पूर्व से मानपुर गाँव से है। तथा दूसरा मार्ग दक्षिण पूर्व से सवारियाँ गाँव से है। तथा तीसरा मार्ग कुरहन गाँव से है। तथा ये मार्ग दक्षिण पश्चिम में है।

अब इस दुर्ग में प्रवेश करने के लिए एक ही द्वार बचा है। इस द्वार को हाथी दरवाजा के नाम से पुकारा जाता है यह द्वार लाल रंग के बलुवा पत्थर से निर्मित है।

चन्देलों के दुर्ग और मन्दिर समस्त स्थलो पर इन्ही पत्थरों से निर्मित हुए थे यहाँ से कुछ दूरी पर खभरिया के समीप चन्देलकालीन दो मन्दिर मिलते होते है। तथा यहीं पर एक सरोवर है और उसके ऊपर छत है जो चार स्तम्भो से रूकी हुई है। मड़फा दुर्ग समुद्र तल से 378 मी0 की ऊचाई पर है, इसी दुर्ग के पश्चिमी किनारे पर एक अन्य तालाब है इसका निर्माण चट्टान काटकर किया गया है। तथा करहन दरवाजे के समीप कुछ चन्देलकालीन मन्दिर भी है।

मड़फा दुर्ग की खोज अंग्रेज इतिहासकार ने 18वीं शताब्दी में की थी। और इसे मडफा नाम प्रदान किया था। इस दुर्ग में कालान्तर में बघेलों और बुन्देलों नरेशों का राज्य रहा। यहाँ का अन्तिम शासक हरवंश राय था जिसका पतन चचरिया युद्ध के पश्चात हुआ। यह युद्ध सन्‌ 1780 में बाँदा के राजा और पन्‍ना के राजा के मध्य हुआ था। सन्‌ 1804 में ब्रिटिश सैनिकों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था।

इस दुर्ग के चारो ओर जंगल है। मड़फा दुर्ग में अनेक दर्शनीय स्थल है हाथी दरवाजे के सन्निकट भगवान शिव का एक विशालकाय मन्दिर है, जिसमें भगवान शिव की विशाल मूर्ति है, तथा उनके अनेक भुजाये है, तथा उन भुजाओं में अनेक प्रकार अस्त्रशस्त्र भी है। तथा वे गले में नरमुण्डो की माला पहने हुए है

थोडी दूर चलने पर एक सरोवर मिलता होता है जिसकी बनावट कालिंजर के स्वर्गारोहण ताल जैसी है तथा इसी के बगल में एक चन्देल कालीन मन्दिर है। इसमें कोई प्रतिमा नही है थोडी दूर चलने पर दो अन्य मन्दिर मिलते है। ये दोनो मन्दिर जैन धर्म से सम्बन्धित है। इन मन्दिरों के समीप जैन तीर्थाकरों की अनेक मूर्तियां है।

यही से थोडी दूर दूरी पर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर मिलते होते है इन मन्दिरों को यहाँ के लोग बारादरी के नाम से पुकारते है। ये मन्दिर पूरी तरह सुरक्षित नही है यहीं से थाडी दूर चलने पर दुर्ग से नीचे उतरने के लिए सीढ़िया लगी हुई है। सीढ़ियों के नीचे गौरी शंकर गुफा नामक एक स्थान है। यहाँ अनेक अर्थ निर्मित मूर्तियाँ है तथा साधू सन्‍तो की एक प्राकृतिक गुफा भी है।

इतिहास के साक्ष्यों के अनुसार यह स्थल माण्डव ऋषि की तपस्थली थी तथा यही पर शकुनन्‍तला ने दुश्यन्त के संयोग से अपने पुत्र भरत को जन्म दिया था

यह स्थली कर्म कण्व ऋषि, यवन ऋषि, चरक ऋषि, और महाआर्धवर्ण की कर्म स्थली रही है। महाआर्धवर्ण व्यास के ससुर थे तथा उनकी पुत्री का नाम वाटिका था जो व्यास की पत्नी थी जब इस क्षेत्र में बघोेलों का शासन स्थापित हुआ उस समय यह बघेल नरेश ब्याघ्ठ देव की राजधानी रही। रामचन्द्र बघेल के शासनकाल तक यह क्षेत्र बघेलों के शासन के अर्न्तगत रहा बाद में रामचन्द्र बघेल ने इस क्षेत्र को मुगल बादशाह अकबर को दे दिया।

सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन और राजा बीरबल पहले रामचन्द्र बघोल के राज्य में भी मडफा में निवास किया करते थे।

यह दुर्ग वास्तव में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दुर्ग था जो विभिन्‍न नरेशों के शासन के अधीन रहा। आज के समय मे मड़फा दुर्ग अपनी क्षीण अवस्था में है। अब यहां इसके सिर्फ भग्नावशेष ही देखने को मिलते है। जो इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है।

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KalinjarFort

कालिंजर फोर्ट

विंध्याचल की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊँचाई पर कालिंजर दुर्ग स्थित है। दुर्ग की ऊँचाई 108 फ़ीट है। किले की दीवारें चौड़ी एव ऊँची बनाई गई हैं। यह मध्यकालीन भारत का सबसे सर्वोत्तम महल माना जाता था। यह दुर्ग की स्थापत्य में कई शैलियाँ प्रदर्शित होती है। जिसमे गुप्त शैली, पंचायतन नागर शैली और प्रतिहार शैली मुख्य है। किले के वास्तुकार ने उसमे बृहद संहिता एव अग्नि पुराण का ख्याल रखते हुए दुर्ग के मध्य में अजय पलका नाम की एक झील भी मौजूद है। उस झील के नजदीक कई प्राचीन मन्दिर भी देखने को मिलते है। कलिंजर किले के प्रवेश के लिए सात दरवाजे निर्मित किये गए है। यह सातो दरवाजे एक दूसरे से भिन्न शैलियों से अंकित किये गए है।

उसकी स्तंभों एवं दीवारों में अलग अलग प्रकार की प्रतिलिपियाँ निर्मित है। ऐसा कहा जाता है की उसमे खजाने का रहस्य छुपा हुआ है। सात द्वारों में पहला एव मुख्य द्वार सिंह द्वार कहा जाता है। तो दूसरे दरवाजे को गणेश द्वार, तीसरे चंडी द्वार और चौथे को बुद्धगढ़ द्वार या स्वर्गारोहण द्वार कहा जाता है। उसके नजदीक ही गंधी कुण्ड या भैरवकुण्ड नाम का जलाशय बना हुआ है। दुर्ग का अदभुत और कलात्मक द्वार पाचवाँ जो हनुमान द्वार है। उसमे आपकोमूर्तियाँ, शिल्पकारी और चंदेल शासकों के शिलालेख देखने को मिलते है। छठा द्वार लाल द्वार नाम से जाना जाता है। उसके पास ही हम्मीर कुण्ड नाम का कुण्ड स्थित है। अंतिम द्वार को महादेव द्वार  या नेमि द्वार कहते है।

किले के शिलालेख में कीर्तिवर्मन तथा मदन वर्मन का नाम मिलता है। उसके अलावा मातृ-पितृ भक्त, श्रवण का चित्र बना हुआ है। इन दुर्ग में मुगल बादशाह आलमगीर औरंगज़ेब से निर्मित आलमगीर दरवाजा, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, और बारा दरवाजा देखने को मिलते है। सीता सेज गुफा उसमे पत्थर का पलंग और तकिया रखा हुआ है। जो सीता की विश्रामस्थली कहा जाता है। उसके नजदीक एक कुण्ड जो सीताकुण्ड कहलाता है। किले में बुड्ढा एवं बुड्ढी नामक दो ताल जो औषधीय गुणों से भरपूर है। चंदेल राजा कीर्तिवर्मन का कुष्ठ रोग भी यहीं स्नान करने से दूर हुआ था।

उस मे राजा महल एव रानी महल नाम के दो भव्य महल हैं। उसमे पाताल गंगा जलाशय है। पांडु कुण्ड में चट्टानों से निरंतर पानी टपकता रहता है। उसके नीचे से पाताल गंगा होकर बहती थी। उसी से यह कुण्ड भरता है। उसके अलावा कोटि तीर्थ, मृगधारा, सात हिरणों की मूर्तियाँ, भैरव की प्रतिमा, मंडूक भैरवी, चतुर्भुजी रुद्राणी, दुर्गा, पार्वती और महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमाएं, त्रिमूर्ति, शिव, कामदेव, शचि (इन्द्राणी) की मूर्तियाँ देखने योग्य है।

7 वी शताब्दी में कलिंजर शहर की स्थापना हुई थी। कलिंजर शहर के राजवी केदार राजा ने  उसकी नीव रखी थी। लेकिन चंदेला शासको के समय में यह प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन कुछ कहानियो के अनुसार यह किले का निर्माण चंदेला राजाओ ने करवाने का भी प्रमाण मिलता है। ऐसा कहा जाता है की चंदेला को “कलंजराधिपति” की उपाधि भी यही स्थान से हासिल हुई थी। यह किले के कई महत्त्व को दर्शाती है। यह किले का उपयोग युद्धों और आक्रमणों के समय में किया जाता था। कई हिन्दू राजाओ और मुस्लिम शासको ने यह किले को प्राप्त करने के लिए युद्ध किये लेकिन कलिंजर किला पर कोई भी राजा ज्यादा समय तक राज नही कर पाया था।

सतयुग का कीर्तिनगर आज का कालिंजर

भारतीय इतिहास का रूबरू साक्षी रहा कालिंजर किला सभी युग में बिराजमान रहा है। यह किले के नाम भले बदलते गये लेकिन उसका आकर्षण कभी ख़त्म नहीं हुआ है। सतयुग में यह कालिंजर कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। कालिंजर का अपराजेय किला प्राचीन काल में जेजाक भुक्ति साम्राज्य के राजाओ के शासन विस्तार में हुआ करता था। महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने कई आक्रमण किये लेकिन कभी जीत नहीं पाए थे। अकबर बादशाह ने 1569 में किला को जीतकर बीरबल को उपहार दे दिया था ।

कालिंजर किले का रहस्य

रहस्मयी गुफा में घना अंधेरा और उसमे से अजीब तरह की आवाजें आती है। उसमे जिस घुंघरू की आवाज आती है, उस नर्तकी का नाम पद्मावती कहा जाता है। पद्मावती भगवान शिव की भक्त और लिहाजा खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरी रात दिल खोल कर नाचती थी। अब पद़माती  नहीं है, लेकिन हज़ारों साल बाद आज भी ये किला पद्मावती के घुघरुओं की आवाज़ से आबाद है। इतिहासकार भी इस सच को मानते हैं। रिसर्च के दौरान एक बार उन्हें देर रात  महल में रुकना पड़ा और फिर रात की खामोशी में अचानक घुंघरुओं की आवाज सुनाई देने लगी थी।

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नीलकंठ-महादेव

नीलकण्ठ महादेव मन्दिर

कालिंजर दुर्ग  के पश्चिमी भाग में कालिंजर शहर के अधिष्ठाता देवता नीलकण्ठ महादेव का एक प्राचीन मन्दिर बनाया गया है। उसमे प्रवेश के लिए के लिए दो द्वार हैं। उसके रास्ते में चट्टानों को काट कर बनाई शिल्पाकृतियाँ और अनेक गुफाएँ हैं। वास्तु की दृष्टि से चंदेल राजाओ की अनोखी और अदभुत कृति है। मन्दिर के दरवाजे पर चंदेल शासक परिमाद्र देव की शिवस्तुति और अंदर एक शिवलिंग स्थापित है। शिव मन्दिर के ऊपर जल का एक प्राकृतिक स्रोत बना है। यह कोई भी दिन सूखता नहीं है। उस से शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है।

कुछ किंवदंतियाँ कहती है। की जब समुद्र मंथन हुआ तब मंथन के बाद भगवान भोले नाथ ने यही स्थान पर समुद्र से निकला जहर पिया था। जब शिवजी भगवान ने उस जहर को पिया तो शिवजी का गला नीला हो गया था । उसी कारन से शिवजी नीलकंठ के नाम से भी जाने जाते है। जहर इस स्थान पर पीने की वजह से कलिंजर में भगवान शिव के मंदिर को नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। और यहाँ के पवित्र स्थान भी मानाजाता है। यहाँ की भूमि प्राकृतिक शांत और ध्यान लगाने के लिए एक आदर्श जगह है।

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तुलसीदासजी_मंदिर

राजापुर – तुलसीदास मंदिर

 कर्वी मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर यमुना तट पर स्थित राजापुर की ख्याति भगवान श्री राम की अमर  जीवन गाथा रामचरितमानस, विनय पत्रिका के रचनाकार महान कवि युग दृष्टा वैष्णव संत भारतीय संस्कृति के अमर वाहक, सनातन धर्म के महान संत  गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थान के कारण है। यहां तुलसीदास मंदिर स्थित है, जहां गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस की हस्तलिखित प्रतियों में से एक का अयोध्या कांड सुरक्षित है, जिसमें 170 पन्ने हैं ऐसी मान्यता है कि संत तुलसीदास ने जन्म लेते ही राम नाम बोला जिससे उन्हें राम बोला भी कहा जाता था। मूल नक्षत्र में 12 माह में जन्म हुआ था। यहां प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है, यमुना का  तट अत्यंत रमणीक है। संत तुलसीदास की पत्नी रत्नावली का गांव यमुना नदी के उस पार माना जाता है।

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टाठी-घाट

टाठी घाट

चित्रकूट का टाठी घाट स्थान बहुत ही प्रसिद्ध है | इस स्थान की कहानी बताई जाती है कि भगवान राम को ऋषियों ने पूजन हेतु थाल भेंट किया था, इसीलिए इस स्थान का नाम टाठी घाट पड़ गया | आज भी इस स्थान में लाखों की तादाद में साधु संत तपस्या में लीन रहते हैं, जबकि उनको कोई देख नहीं सकता है | इस स्थान का नाम पूरे विश्व में काफी खास माना जाता है, दीपावली व अमावस्या के मौके पर लाखों श्रद्धालु टाठी घाट में पहुंचकर पूजा पाठ करते हैं |

जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर यूपी और एमपी के बीच में बसा टाठी घाट काफी प्रसिद्ध घाट जाना जाता है | एक धार्मिक स्थल के रूप में यह काफी प्रसिद्ध स्थान है | यह साधु संतों की तपस्या के लिए शांत जगह है |

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सोमनाथ_मंदिर

सोमनाथ मन्दिर 

चित्रकूट-कर्वी से 12 किलोमीटर पूर्व कर्वी-मानिकपुर रोड के मध्यवर्ती ग्राम चर में वाल्मीकि नदी के तट पर एक पहाड़ी पर भगवान सोमनाथ शिव जी का भव्य प्राचीन मन्दिर है। मन्दिर के गर्भगृह की दीवार पर एक शिलालेख अंकित है जिसमें लिखा हुआ है कि इसका निर्माण 14 वीं शताब्दी के अन्त में तत्कालीन नरेश राजाकीर्ति सिंह ने कराया है। ऐसा बताया जाता है कि जिस पहाड़ी पर इस मन्दिर का निर्माण हुआ है उस पहाड़ी को सौरठिया पहाड़ी कहते थे। उस समय सौरठिया का अर्थ लोगों की समझ में नहीं आया था पर अब स्पष्ट हो गया है कि सौराष्ट्र का अपभ्रंश सौरठिया है। इसके समीप ही तत्कालीन शासकों की उपराजधानी भी थी जिसका नाम मदनगढ़ था। आजकल लोग इसे ‘मदना’ नाम से पुकारते हैं। उसके ध्वंशावशेष आज भी विद्यमान हैं। मन्दिर प्रांगण तथा इसके आस पास विभिन्न आकार प्रकार वाली देवी, देवताओं, गन्धर्व, अप्सराओं, किन्नरों, भूत- प्रेतों, और गंगा यमुना की देवी स्वरूप मूर्तियों के साथ साथ पशु पक्षियों की लगभग दो हजार छोटी बड़ी मूर्तियों और उनके अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यहा मूर्तिकला सिखाने का कोई विश्वविद्यालय रहा होगा। यहाँ जीर्णावस्था में बिखरे पड़े असंख्य भग्नावशेषों से एक भी पत्थर ऐसा नहीं है जिसमें नक्काशी न हो। पत्थर की कटाई करके उकेरी (उत्कीर्ण) गयी देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राचीन शिल्प कला का अद्भुत नमूना हैं। लोगों की मान्यता है यहां समस्त मन्नतें पूरी होती हैं, तथा कष्टों का निवारण होता है। महाशिवरात्रि में यहां मेला लगता है।

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सबरी-जल-प्रपात-

शबरी/तुलसी जल प्रपात

शबरी जल प्रपात (शबरी झरना) चित्रकूट जिले (उत्तर प्रदेश) के अंतर्गत आता है,  यह झरना डुडैला गाँव (निकट बम्बिया और टिकरिया ग्राम पंचायत) में स्थित है। यह मारकुंडी से 10 किमी, मझगवां (एमपी) से 13 किमी, मानिकपुर से 32 किमी और चित्रकूट धाम से 47 किमी दूर है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कि भगवान राम ने शबरी मैया से फल खाने के बाद इस स्थान पर स्नान किया था और इस स्थान का नाम शबरी मैया के नाम पर पड़ा।  सबरी जलप्रपात को घूमने का सबसे अच्छा मौसम बारिश का होता है। मानसून के मौसम में पानी का बहाव अधिक होता है जो कि देखने में बहुत ही अच्छा लगता है ।  जुलाई से सितंबर सबसे अच्छे महीने है यहां जाने के लिए हालांकि दिसंबर तक भी लोग यहां जाते हैं ।

कर्वी मुख्यालय से मानिकपुर होते हुए 60 से 65 किलोमीटर की दूरी पर मानिकपुर सतना संपर्क मार्ग पर मध्यप्रदेश के सतना बॉर्डर पर स्थित परासीन पहाड़ से धारकुंडी मारकुंडी जंगलों के बीच से चित्रकूट के पाठा के जंगलों में कल-कल बहती पयश्वनी नदी  पर टिकरिया के जमुनिहाई गांव के पास बंभिया जंगल में  ऋषि सर भंग आश्रम से निकली जलधारा सबरी जलप्रपात का निर्माण करती है सबरी जलप्रपात प्रकृति की नैसर्गिक अनुपम सौंदर्य का शानदार अद्भुत जलप्रपात है धर्म नगरी व प्रभु श्री राम की पावन तपोभूमि में  पयश्वनी नदी पर  शबरी जलप्रपात यूं तो वर्ष भर आकर्षण बिखेरता है पर बारिश के दिनों में बस्तर के नियाग्रा की तर्ज पर अप्रतिम सौंदर्य से अपने मोह पास में किसी को भी आसानी से जकड़ने के लिए काफी है सबरी जलप्रपात  में झर झर कल कल निनाद करते  जलप्रपात का विहंगम दृश्य मिर्जापुर के विंडम फाल एवं मसूरी के केंपटी फॉल की तरह मनमोहक मन को शांति देने वाला एवं चित्ताकर्षक है मान्यता है कि भगवान राम यहां पर आए थे एवं जल ग्रहण कर कुंड में स्नान किया था पाठा के जंगल में रहने वाले  कोल भील अपने को शबरी का वंशज मानते हैं उन्हीं के नाम पर शबरी जलप्रपात कहा जाता है।

त्रिजलधारा के वेग व 35 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से करीब 40 फीट नीचे गिरने वाली जल राशि कुंड में तब्दील होकर अथाह गहराई को प्राप्त करती है करीब 60 मीटर चौड़े और इससे कुछ अधिक लंबे कुंड से फिर दो जल रासिया नीचे की ओर गिरती हैं जल राशियां नीचे की ओर गिरकर सम्मोहन को बढ़ा देती हैं जल राशि जमीन पर बादलों के होने का एहसास कराती हैं बेग व प्रचंड शोर से अंतर्मन के तार झंकृत हो उठते हैं जलप्रपात प्रकृति से सीधे जुड़ने का अवसर प्रदान करता है यहां आस-पास आदिमानव कालीन रंगीन चित्रकारी भी दर्शनीय है

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प्रमोद-वन

प्रमोद वन

रामघाट से एक किलोमीटर दक्षिण चित्रकूट-सतना रोड पर पयस्विनी तट यह स्थान स्थित है। इसमें रीवां नरेश का बनवाया हुआ श्री नारायण भगवान का मन्दिर है। इसके चारों ओर लगभग 300 कोठरियाँ बनी हुई है, जिनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि रीवां नरेश ने किसी दैवी बाधा की शान्ति के लिए इनका निर्माण करा कर उतने ही पण्डितों द्वारा किसी विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया था। चित्रकूट का प्रमोद वन जहा प्रभु राम ने आमोद प्रमोद के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताये है, उसी जगह पर स्थित है- पुत्र दायनी वृक्ष। यहाँ दूर -दूर से संतान से निराश लोग आते है और यहां आकर इस वृक्ष की पूजा अर्चना करते है। उसके बाद पुजारी उन्हें इस वृक्ष की पत्तियां देते है जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।

यह वट वृक्ष भगवान राम की नगरी चित्रकूट के प्रमोद वन में लगा है यह वृक्ष लगभग 500 साल पुराना है।  यह मामूली वृक्ष नहीं है। वट वृक्ष हर जगह देखने को नहीं मिलता। पुराणों में भी इस वृक्ष का जिक्र है। कहा जाता है कि पृथ्वी के दुख हरने के लिए इस वृक्ष को स्वर्ग से लाया गया था। हजारों साल पहले ऋषि द्वारा घोर तपस्या करने के बाद यह वृक्ष स्वर्ग से धरती पर ईश्वर ने खुद उतारा था। इस पेड़ को भगवान तुल्य माना जाता है।

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रानीपुर-टाइगर_रिज़र्व

रानीपुर टाइगर रिज़र्व

चित्रकूट ज़िले के रानीपुर में स्थित है, जो 36 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है230.32 वर्ग किमी. कोर क्षेत्र और 299.05 वर्ग किमी. बफर क्षेत्र वाला यह टाइगर रिज़र्व बाघ संरक्षण की कोशिशों को मजबूत करेगा। इसके अलावा करीब 300 वर्ग किमी. का क्षेत्रफल इसमें और जोड़ा जा रहा है।

रानीपुर वन्य जीव बिहार करीब 230 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसके अलावा 16620 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र के साथ प्रदेश में अनेक रमणीक एवं मनोरम स्थल है। रानीपुर टाइगर रिज़र्व मध्य प्रदेश स्थित पन्ना टाइगर रिज़र्व से महज 150 किमी. की दूरी पर स्थित है। रानीपुर टाइगर रिजर्व में बाघ, तेदुआ, भालू, सांभर, स्पाटेड डीयर, चिन्कारा के प्राकृतिक आवास भी हैं। रानीपुर टाइगर रिज़र्व भारत 53वाँ बाघ रिज़र्व बन गया है। उत्तर प्रदेश में दुधवा, पीलीभीत और अमनगढ़ के बाद यह राज्य का चौथा टाइगर रिज़र्व है तथा भारत में बाघों की हालिया गिनती 2018 में की गई थी, जिसके मुताबिक देश में 2967 बाघ हैं और इनमें से 173 उत्तर प्रदेश में हैं।

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पम्पापुर

पंपापुर

देवांगना घाटी में स्थित पंपापुर चित्रकूट से केवल 5 किमी दूर है। यहाँ भगवान राम से संबंधित कई पवित्र गुफाएँ हैं जो इसे भगवान के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाती हैं। कई शताब्दियाँ पुरानी यह गुफाएँ ऊबड़-खाबड़ हैं और इतिहास के शौकीनों को कुछ समय के लिए मोहित कर देती हैं। कोटितीर्थ से बायीं ओर पत्थरों से निर्मित एक रास्ता पंपापुर के लिए जाता है। इस रास्ते पर लगभग 500 मीटर चलने के बाद दाहिनी ओर थोड़ा नीचे उतरने पर पंपापुर गुफा में हनुमान जी विराजे हैं। दक्षिणमुखी हनुमान प्रतिमा पर लोगों की अटूट आस्था है।

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मैहर की शारदा देवी मंदिर

मैहर देवी

मैहर शहर का नाम भी भगवान से जुड़ी कहानी पर ही निर्धारित है कहा जाता है। जब भगवान शिव जी देवी सती के शव को गोदी मे उठाकर ले जा रहे थे तब उनके गले का हार टूट कर इस जगह में गिर गया और तब से ही इस शहर का नाम माई का हार “मैहर” पड़ गया। शारदा देवी जी का मंदिर भक्तों से सदा पटा रहता है।

मंदिर के इतिहास में जाये तो मां शारदा की प्रतिष्ठापित मूर्ति चरण के नीचे एक प्राचीन शिलालेख से मूर्ति की प्राचीन प्रामाणिकता की पुष्टि होती है। मैहर नगर के पश्चिम दिशा की ओर चित्रकूट पर्वत में श्री आद्य शारदा देवी तथा उनके बाईं ओर प्रतिष्ठापित श्री नरसिंह भगवान की पाषाण मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा आज से लगभग 1994 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत् 559 शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, मंगलवार के दिन, ईसवी सन् 502 में तोर मान हूण के शासन काल में श्री नुपुल देव द्वारा कराई गई थी

शारदा माता मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है, कि इस मंदिर के पट बंद हो जाने के बाद जब पुजारी पहाड़ से नीचे चले आते हैं, और वहां पर कोई भी नहीं रह जाता है, तो वहां पर आज भी दो वीर योद्धा आल्हा और उदल अदृष्य होकर माता की पूजा करने के लिए आते हैं, और पुजारी के पहले ही मंदिर में पूजा करके चले जाते हैं। मान्यता है कि आल्हा-उदल ने ही कभी घने जंगलों वाले इस पर्वत पर मां शारदा के इस पावन धाम की न सिर्फ खोज की, बल्कि 12 साल तक लगातार तपस्या करके माता से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था। मान्यता यह भी है कि इन दोनों भाइयों ने माता को प्रसन्न करने के लिए भक्ति – भाव से अपनी जीभ शारदा को अर्पण कर दी थी, जिसे मां शारदा ने उसी क्षण वापस कर दिया था।

आज भी मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन सर्वप्रथम आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से दो किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।

सनातन परंपरा में मां शारदा को विद्या, बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे छात्र मां शारदा का विशेष आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं। मां शारदा की सच्चे मन से पूजा करने वाले साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती। मां शारदा की कृपा से वह हमेशा तमाम प्रकार के भय, रोग आदि तमाम प्रकार की व्याधियों से भी बचा रहता है। लगभग 600 फुट की ऊंचाई वाले इस शक्तिपीठ में माता के दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर की 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, हालांकि आप चाहें तो रोपवे से भी वहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं।

संपूर्ण भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। मंदिर परिसर में श्री कालभैरव, हनुमानजी, काली देवी दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रह्मदेव और जालपा देवी के मंदिरों की श्रृंखला है।

चित्रकूट से मैहर देवी मंदिर की दूरी लगभग 120 कि.  मी.  है 

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AROGYADHAM

आरोग्यधाम

आरोग्यधाम, रामघाट से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां पर उच्च स्तरीय आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है ।  यहां की सुंदर एवं आकर्षक बागवानी दर्शनीय है । आरोग्यधाम में  योग केंद्र भी है  जहां आप योग  का आनंद ले सकते हैं ।  शाम को पर्यटक  मंदाकिनी नदी में स्नान भी कर सकते हैं,  हर शाम यहां हजारों लोग नहाने के लिए इकट्ठा होते हैं।

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पंच प्रयाग

आध्यात्म के धनी तीर्थक्षेत्र में पंच प्रयाग का अपना अलग ही महत्व है। यह स्थल सती अनुसुइया आश्रम की ओर जाने वाले मार्ग से बांयी ओर दो किमी दूर है। तीर्थक्षेत्र में कई दुर्गम स्थलों में से एक पंच प्रयाग का संगम स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। अनुसुइया आश्रम की तरफ जाने वाली सड़क से बांयी तरफ दो किमी दूर चलने पर इस रमणीय स्थल तक पहुंचा जा सकता है। तीर्थक्षेत्र अनुसइया आश्रम से लगभग चार किमी दूर स्थित मंदाकिनी और झूरी नदी का यह संगम स्थल एक झील के रूप में बहुत ही मनोरम है। पंच प्रयाग के पावन स्थल पर कई संतो ने अपने तप से इसे पवित्र बना दिया। आज भी इस दुर्गम स्थल में बनी पर्णकुटी में तपस्या कर रहे संत ईश्वर से खुद का एकाकार करने के लिए तप में लीन हैं।

अनुसुइया आश्रम पहाड़ के ठीक पीछे से निकली झूरी नदी का उद्गम स्थल है। उद्गम स्थल में अनवरत रूप से स्वच्छ व धवल जल धारा अनवरत निकलती है जो कौतूहल का विषय है। उद्गम स्थल से लगभग तीन किमी की दूरी तय कर पंच प्रयाग पहुंचकर मंदाकिनी नदी में विलीन हो जाती है। हालांकि इसके उद्गम स्थल के बारे में एक किंवदंती कही जाती है कि ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता लेकिन जो टिक जाता है उसका ईश्वर से एकाकार हो ही जाता है। वाराणसी के प्रसिद्ध संत देवरहा बाबा ने भी यहां पर तप किया है। सती अनुसुइया के सतीत्व, सिद्धबाबा, परमहंस महाराज आदि योगियों की तपस्या ने इस क्षेत्र को पवित्र बना दिया हैं।

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देवांगना कोटितीर्थ

यह स्थल चित्रकूट से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है यहां पर एक विशाल गुफा एवं हनुमान जी का मंदिर है यह स्थल  तपसिवयों  के साधना हेतु प्रसिद्ध है तथा प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है ।

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विराध-कुंड

विराध कुण्ड

भगवान श्री राम जिस मार्ग से चित्रकूट से आगे गए थे, वह मार्ग अब भी है, किंतु घोर वन में पगडंडी के रूप में । यहां दूर तक चौरस शिलाए हैं । अनसुइया आश्रम से शरभंग आश्रम तक मार्ग में दोनों और वन है । अनसुइया आश्रम से दूर एक झरना तथा गुफा में हनुमान जी की मूर्ति है । यहां से कुछ ही  दूरी पर विराध कुंड है । यहां लक्ष्मण जी ने गड्ढा खोदा था जिसमें विराध राक्षस को गाड़ दिया था । यह टेढ़ा मेढ़ा गड्ढा बहुत बड़ा है ।

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बांके-सिद्ध

बाँके सिद्द

चित्रकूट से 11 किलोमीटर तथा गणेश बाग से 3 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में विंध्य पर्वत श्रंखला के पार्श्व भाग में स्थित बांके सिद्ध अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है । यह प्रकृति निर्मित एक सुंदर कंदरा है । एक विशाल चट्टान के नीचे विस्तृत कक्ष बना हुआ है, जो धरातल से सैकड़ों फिट ऊंचा है । गुफा तक पहुंचने के लिए नीचे से पक्की सीढ़ियां बनी हुई है । ऊपर से निर्मल जल का झरना गुफा के उत्तरी भाग को नहलाता हुआ पर्वत के ही कक्ष में विलीन हो जाता है ।

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सरभंग-आश्रम

शरभंग-आश्रम

यह स्थान चित्रकूट के दक्षिण पूर्व में 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।  विराध कुंड से टिकरिया गांव होकर वन के मार्ग से शरभंग आश्रम के लिए जाया जाता है ।  शरभंग आश्रम के पास एक कुंड है जिसमें नीचे से जल आता है । यहां श्री राम मंदिर है ।  वन्य पशुओं का भय होने से संध्या के पश्चात मंदिर का बाहरी द्वार बंद कर दिया जाता है ।  महर्षि शरभंग ने भगवान श्री राम के सामने अग्नि प्रज्वलित करके यही अपना शरीर त्यागा था ।

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नांदी-हनुमानजी

नांदी के हनुमान जी

चित्रकूट जिले की नांदी गांव में स्थित नांदी के हनुमान जी मंदिर, जिसमें दक्षिणमुखी हनुमान जी की प्रतिमा है। उन्होंने बताया कि मान्यता है कि दक्षिणमुखी हनुमान जी से मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। और यहां पर स्थिति हनुमान जी का एक पैर आज भी पाताल लोक तक जाता है ।  मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी राजापुर से यहां रोज हनुमान जी के दर्शन को आते थे । परिसर में लगा पीपल का पेड़ उन्हीं का लगाया हुआ माना जाता है। नांदी के हनुमान जी की मान्यता दूर-दूर तक है।

दिशा हेतु direction

चित्रकूट घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है। अक्टूबर से नवंबर के महीने में शहर और उसके आसपास बहुत अच्छे प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं। दिसंबर से मार्च सभी सैर-सपाटे और पर्यटन गतिविधियों के लिए बेहतरीन है। चित्रकूट जलप्रपात की यात्रा के लिए जुलाई से अक्टूबर तक का मानसून महीना सबसे अच्छा समय है, जब झरनों का सौन्दर्य देखने योग्य होता है  ।

एक दिन में भ्रमण  करने के स्थान 

  • कामतानाथ मंदिर
  • हनुमान धारा
  • रामघाट
  • जानकी कुण्ड
  • आरोग्यधाम
  • माता सती अनुसुइया जी का मंदिर
  • गुप्त गोदावरी
  • स्फटिक शिला
  • मत्यगयेंद्रनाथ स्वामी

एक दिन से अधिक यात्रा/भ्रमण करने के स्थान 

  • सोमनाथ मंदिर (16 कि. मी. )
  • धारकुण्डी (50 कि. मी. ) , रानीपुर टाइगर रिज़र्व (40 कि. मी. ), तुलसी जल प्रपात(45 कि. मी. )
  • तुलसी मंदिर राजापुर ( 36 कि. मी. )
  • भरतकूप मंदिर तथा  कलिंजर का किला (48 कि .मी .)
  • मैहर देवी मंदिर (116 कि. मी.)

रोप-वे सुविधा – हनुमान धारा

हनुमान धारा

हनुमान धारा, चित्रकूट, मध्य प्रदेश में स्थित हवाई रोपवे हनुमान धारा की यात्रा के लिए सबसे अच्छा साधन है। हनुमान धारा पहाड़ी की चोटी पर एक अत्यंत पूजनीय स्थान है जिसका पौराणिक महत्व है।इसका उल्लेख रामायण के पवित्र ग्रंथ में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान धारा में झरने का पानी भगवान राम ने हनुमान जी के लिए बनाया था जब वे लंका में आग लगाने के बाद लौटे थे। उपचार गुणों के लिए जाने जाने वाले झरने के पानी की भारी मांग है और श्रद्धालु बड़ी संख्या में इसे ले जाते हैं। सतत धारा का स्रोत भी इस प्रसिद्ध पवित्र स्थान के रहस्य को बढ़ाता है।

रोपवे तीर्थयात्रियों को 618 सीढ़ियों की कठिन, खड़ी चढ़ाई से बचाकर, पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने में मामूली 5 मिनट का समय लेता है, जिससे उन्हें काफी राहत मिलती है।

समय, बुकिंग, कीमत:

एक राउंड ट्रिप यात्रा की कीमतें (करों सहित) इस प्रकार हैं

  •     दिव्यांग व्यक्ति : शून्य
  •     3 वर्ष तक के बच्चे : शून्य
  •     3 से 5 साल के बच्चे (दोनों तरफ): 107 रुपये
  •     3 से 5 वर्ष के बीच के बच्चे (मंदिर से लोअर रोपवे स्टेशन): 85 रुपये
  •     5 वर्ष से ऊपर के लोग (दोनों तरफ): 145 रुपये
  •     5 वर्ष से ऊपर के लोग (मंदिर से लोअर रोपवे स्टेशन): 115 रुपये
  •     मासिक पास (30 दिन) : 1450 रुपये

* मासिक पास केवल टिकट काउंटर पर व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करने और आवेदन करने की आवश्यकता है। आपको 2 स्टांप साइज फोटो और एक सरकार द्वारा जारी आईडी प्रूफ जमा करना होगा। यह पास राज्य सरकार के सभी कार्य दिवसों पर वैध होगा और 30 कैलेंडर दिनों की अवधि के लिए प्रति दिन एक दोतरफा सवारी के लिए लागू होगा। नए पास के लिए हर महीने प्रक्रिया दोहरानी होगी। पास गैर-वापसीयोग्य/गैर-हस्तांतरणीय है। अप्रयुक्त दिनों/सवारी को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।

* केबिन की क्षमता 6 व्यक्तियों की है।

* रोपवे सेवा सुबह 6.00 बजे से रात 9.00 बजे तक उपलब्ध है। सूरज की रोशनी और मौसम की स्थिति के आधार पर समय को दैनिक आधार पर थोड़ा समायोजित किया जा सकता है।

रोप-वे सुविधा – लक्ष्मण पहाड़ी

रोप-वे
लक्ष्मण पहाड़ी के लिए बने रोप-वे
से यात्रियों को लक्ष्मण पहाड़ी पर ले जाने के लिए छह ट्रॉली लगाई गई हैं। तीन ट्रॉली ऊपर जाती  है और तीन नीचे जाती  है ।  एक ट्रॉली में छह लोग यानी एक बार में 18 लोग सफर कर सकते है। लक्ष्मण पहाड़ी के ऊपर पहुंचने के लिए 264 मीटर ऊंचा रोप-वे तैयार किया गया है। पहले लोगों को पहाड़ी पर पहुंचने के लिए करीब 400 सीढ़ी चढऩा पड़ता था, जिसमें 15 से 20 मिनट लगते थे। अब रोप-वे से सिर्फ 2 मिनट में पहाड़ी की चोटी पर पहुंच जायेगे । रोप-वे में आने-जाने का किराया शासन की ओर से 80 रुपए निर्धारित किया गया है। साथ ही पांच साल से छोटे बच्चे का 40 रुपए किराया लिया जाएगा। यदि कोई एक तरफ से सफर करना चाहेगा तो उससे भी 40 रुपए ही लिए जाएंगे।

कामतानाथ भगवान की परिक्रमा हेतु व्हीलचेयर की सुविधा

wheelchair

कामदगिरि परिक्रमा करने में जो भी लोग असमर्थ रहते हैं। उनके लिए यहां पर व्हीलचेयर की सुविधा उपलब्ध रहती है। यहां पर छोटे-छोटे बच्चे व्हीलचेयर के द्वारा बूढ़े लोगों को और असमर्थ लोगों को कामदगिरि की परिक्रमा करवाते हैं और उनको 200 चार्ज पे करना पड़ता है, तो यहां पर सभी लोग परिक्रमा आराम से कर सकते हैं।

 

क्रम संख्या धार्मिक स्थल  पता समय
1 मत्यगजेन्द्रनाथ मंदिर, शिव मंदिर रामघाट, चित्रकूट प्रातः 5:00 से रात्रि 9:00 तक
2 कामदगिरि मंदिर चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
3 भरतमिलाप मंदिर परिक्रमा मार्ग चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
4 लक्ष्मण पहाड़ी मंदिर परिक्रमामार्ग, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
5 मड़फा मंदिर, शिव मंदिर मानपुर, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
6 बन्धोइन माता मंदिर बन्धोइन, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
7 सोमनाथचर मंदिर शिव मंदिर चर, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
8 बरहा के हनुमानजी मंदिर परिक्रमामार्ग, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
9 नांदीन के हनुमानजी मंदिर चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
10 भरतकूप मंदिर भरतकूप, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
11 झारखंडी माता मंदिर तरांैहा, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
12 कालका देवी मंदिर सीतापुर ,चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
13 बूढ़े हनुमानजी मंदिर रामघाट, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
14 लैनाबाबा हनुमान मंदिर/श्री रामजीका मंदिर शिवरामपुर, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
15 संकटमोचन मंदिर/श्री रामजी मंदिर राजापुर, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
16 दक्षिणमुखी हनुमानजी मंदिर परिक्रमामार्ग जलेबीगली प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
17 असावरी माता मंदिर लालापुर, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
18 डण्डहरीया हनुमानजी मंदिर हरिहरपुर, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
19 हनुमान धारा मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
20 सतीअनसूइया माता मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
21 गुप्तगोदावरी मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
22 रामदरबार मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक

लकड़ी के खिलौने

वनीय क्षेत्र होने के कारण चित्रकूट में लकड़ी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है । बहुत बड़ी संख्या में इस जनपद के कारीगर लकड़ी के खिलौने बनाने में संलिप्त हैं । इस जनपद में निर्मित लकड़ी के खिलौने प्रदेश के अन्य भागों में मेले और प्रदर्शनियों में विक्रय हेतु भेजे जाते हैं । चित्रकूट में शिल्पकारों का एक छोटा-सा गांव सीतापुर है, जहाँ लकड़ी के खिलौने बनाने वाले क़रीब पचास परिवार आबाद हैं । ये शिल्पी स्थानीय लकड़ी से ख़ूब चटख़ रंग वाले आकर्षक खिलौने बनाते हैं ।

लकड़ी के खिलौने

 

काष्ठ कला उत्पाद
(एक जनपद एक उत्पाद )

चित्रकूट जनपद की काष्ठकला का देश भर में अपना अलग स्थान है | पारंपरिक शैली को आधुनिकता के रंग में सजाकर यहाँ के शिल्पकारों ने इस कला को नए आयाम दिये हैं | फर्नीचर से लेकर दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का लकड़ी से निर्माण यहाँ किया जाता है | लकड़ी पर नक्काशी का एक नया रूप आपको यहाँ देखने को मिलेगा | न केवल खिलौने बल्कि गृह निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्री यथा दरवाजों व खिड़कियों की चौखट-बाजुएँ यहाँ से अन्य नगरों में भी जाती हैं | वर्तमान में इस उद्योग में आधुनिक प्रौद्योगिकी का छोटे पैमाने पर प्रयोग होता है क्योंकि यह उद्योग यहाँ पर पारम्परिक रूप से चला आ रहा है और कुटीर उद्योग के रूप में फैला है |

त्यौहारो एवं मेलो के समय जन मानस हेतु दिशा निर्देश

 

कंट्रोल रूम फ़ोन नंबर

08737991438

08737991456

087654 73609

 087654 73613

 05198298090

जिलाधिकारी चित्रकूट
05198-235305,
05198-235118
पुलिस अधिक्षक चित्रकूट
05198-235241
सहायक पर्यटन कार्यालय
05198-222218,
05198-224219
पुलिस हेल्पलाइन
112
फायर हेल्पलाइन
101
एंबुलेंस हेल्पलाइन
108 / 102
महिला हेल्पलाइन
1090
चाइल्ड हेल्पलाइन
1098
मुख्यमंत्री हेल्पलाइन
1076
यूपी महिला आयोग हेल्पलाइन
1800-180-5220
यूपी टूरिज्म कस्टमर केयर
0522-4004402
वन विभाग टोल फ्री
1926
कोविड-19 यूपी हेल्पलाइन
1800-180-5145
जिला कंट्रोल रूम
08737991438, 08737991456, 08765473609, 08765473613, 05198298090