बंद करे

backup_tourism

चित्रकूट, “अनेक आश्चर्यों की पहाड़ियां”  वास्तव में प्रकृति और देवताओं द्वारा प्रदत्त एक अद्वितीय उपहार है, जो उत्तर प्रदेश में पयस्वनी/मन्दाकिनी नदी के किनारे विन्ध्य के उत्तरार्द्ध में स्थित एक शांत क्षेत्र है। ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से चित्रकूट महत्वपूर्ण जनपद है। चित्रकूट दो शब्दों के मेल से बना है।संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक एवं कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। इस वन क्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत मिलते थे।

यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैली उत्तरी विंध्य श्रृंखला में स्थित है।

यहाँ का बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना जनपद में शामिल है। यहाँ प्रयुक्त “चित्रकूट” शब्द, इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों और स्थलों की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत का प्रतीक है।

प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। सोमवती अमावस्या, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति और राम नवमी यहाँ ऐसे समारोहों के विशेष अवसर हैं।

प्राचीन इतिहास 

चित्रकूट सभी तीर्थों का तीर्थ है

चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।

प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है। हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की है और अपनी तपस्या, साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है।

अत्री, अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सारभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपनी आयु व्यतीत की और जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं

प्राचीन काल से ही चित्रकूट का एक विशिष्ट नाम और पहचान है।इस स्थान का पहला ज्ञात उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है, जो पहले सबसे पहले कवि द्वारा रचित सबसे पहला महाकाव्य माना जाता है। एक अलिखित संरचना के रूप में, विकास के इस महाकाव्य को, पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परंपरा द्वारा, सौंप दिया गया था। जैसा कि वाल्मीकि, जो राम के समकालीन (या उनसे पहले) माने जाते हैं, और मान्यता है कि उन्होंने राम के जन्म से पहले रामायण का निर्माण किया गया था, से इस स्थान की प्रसिद्धि व पुरातनता को अच्छी तरह से निरूपित किया जा सकता है। महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को एक महान पवित्र स्थान के रूप में चित्रित करते हैं, जो महान ऋषियों द्वारा बसाया गया है और जहाँ बंदर, भालू और अन्य विभिन्न प्रकार के पशुवर्ग और वनस्पतियां पाई जाती हैं।

 ऋषि भारद्वाज और वाल्मीकि दोनों इस क्षेत्र के बारे में प्रशंसित शब्दों में बोलते हैं और श्रीराम को अपने वनवास की अवधि में इसे अपना निवास बनाने के लिए सलाह देते हैं, क्योंकि यह स्थान किसी व्यक्ति की सभी इच्छाओं पूर्ण करने और उसे मानसिक शांति देने में सक्षम था। जिससे वह अपने जीवन में सर्वोच्च लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।

प्रकृति ने इस क्षेत्र को बहुत उदारतापूर्वक अपने सभी उपहार प्रदान किये हैं, जो इसे दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम बनाता है।  इस प्रकार इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुगंध है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है।

हिंदू आस्था के अनुसार, प्रयागराज (आधुनिक नाम- इलाहाबाद) को सभी तीर्थों का राजा माना गया है; किन्तु चित्रकूट को उससे भी ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। किवदंती है की जब अन्य तीर्थों की तरह चित्रकूट प्रयागराज नहीं पहुंचे तब प्रयागराज को चित्रकूट की उच्चतर पदवी के बारे में बताया गया तथा प्रयागराज से अपेक्षा की गयी की वह चित्रकूट जाएँ, इसके विपरीत की चित्रकूट यहाँ आयें। ऐसी भी मान्यता है कि प्रयागराज प्रत्येक वर्ष पयस्वनी में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए आते हैं।

भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक भगवान राम, माता सीता तथा श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा । किवदंती है, कि त्रेता युग में जब भगवान श्री रामचंद्र जी वनवास काल के दौरान चित्रकूट में रहने के लिए आये, तो उन्होंने रहने से पहले महाराजाधिराज श्री मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी जी से आज्ञा ली, इसके बाद ही उन्होंने 11 वर्ष यहाँ व्यतीत किये। मान्यता है, कि त्रेता युग में भगवान श्री रामचंद्रजी के वनवास काल के बाद महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ के सती अनुसुइया आश्रम जंगल में रहे थे।

यह भी कहा जाता है कि जब प्रभु राम ने अपने पिता का श्राद्ध समारोह किया तो सभी देवी-देवता शुद्धि भोज (परिवार में किसी की मृत्यु के तेरहवें दिन सभी सम्बन्धियों और मित्रों को दिया जाने वाला भोज) में भाग लेने चित्रकूट आए। वे इस स्थान की सुंदरता से मोहित हो गए थे। भगवान राम की उपस्थिति में इसमें एक आध्यात्मिक आयाम जुड़ गया। इसलिए वे वापस प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं थे। कुलगुरु वशिष्ठ, भगवान राम की इच्छा के अनुसार रहने और रहने की उनकी इच्छा को समझते हुए विसर्जन (प्रस्थान) मंत्र को बोलना भूल गए।

इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने इस जगह को अपना स्थायी आवास बना लिया और वहां हमेशा उपस्थित रहते हैं। आज भी, यहां तक कि जब एक अकेला पर्यटक भी प्राचीन चट्टानों, गुफाओं, आश्रमों और मंदिरों की विपुल छटा बिखेरे हुए इस स्थान में पहुंचता है तो पवित्र और आध्यात्मिक साधना में लगे ऋषियों के साथ वह अनजाने में ही खुद को पवित्र संस्कारों और ज्ञानप्राप्ति के उपदेशों और कृतियों से भरे माहौल में खो देता है और एक अलग दुनिया के आनंद को प्राप्त करता है। विश्व के सभी हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री और सत्य के साधक इस स्थान में अपने जीवन को सुधारने और उन्नत करने की एक अदम्य इच्छा से प्रेरित होकर आश्रय लेते हैं।

पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री पयस्वनी/मन्दाकिनी में डुबकी लेकर और कामदगिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत होता है।

राम से संबंधित संपूर्ण भारतीय साहित्य में इस स्थान को अद्वितीय गौरव दिया गया है।

भगवान राम
 स्वयं इस जगह के मोहक प्रभाव को मानते हैं।

‘रामोपाख्यान’ और महाभारत के विभिन्न स्थानों पर तीर्थों के विवरण में चित्रकूट एक को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

यह ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘बृहत् रामायण’ चित्रकूट की झकझोर कर देने वाली आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता को प्रमाणित करते हैं। लेखकों के अनुसार बाद में चित्रकूट और इसके प्रमुख स्थानों का वर्णन सोलह कंटो में वर्णित है। राम से संबंधित पूरे भारतीय साहित्य में इस स्थान को एक अद्वितीय गौरव प्रदान किया गया है।

हिंदी संत-कवि तुलसीदास जी ने अपनी सभी प्रमुख कृतियों- रामचरित मानस, कवितावली, दोहावली और विनय पत्रिका में इस स्थान का बहुत सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है।

अंतिम पाठ में कई छंद हैं, जो तुलसीदास और चित्रकूट के बीच गहरे व्यक्तिगत संबंध को प्रदर्शित करते हैं। अपने जीवन का काफी हिस्सा उन्होंने यहाँ भगवन राम की पूजा और उनके दर्शन की लालसा में व्यतीत किया। यहाँ उनकी उपलब्धियों का एक उल्लेखनीय पल माना जाता है जब हनुमान जी की मध्यस्थता में उन्हें उनके आराध्य प्रभु राम के दर्शन प्राप्त हुए। उनके मित्र, प्रसिद्ध हिंदी कवि रहीम (अब्दुर रहीम खान ए खाना, सैनिक, राजनीतिज्ञ, संत, विद्वान, कवि, जो अकबर के नव-रत्नों में से एक थे ) ने यहां कुछ समय बिताया था जब वह अकबर के पुत्र सम्राट जहांगीर के पक्ष में थे।

महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ में इस स्थान का सुंदर वर्णन किया है। वह यहाँ के आकर्षण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने मेघदूत में अपने यक्ष के निर्वासन का स्थान चित्रकूट (जिसे वह प्रभु राम के साथ इसके सम्मानित संबंधों की वजह से रामगिरी कहते हैं) को बनाया।

प्रणामी संप्रदाय के बीटक साहित्य के अनुसार, संत कवि महामति प्रणनाथ ने यहां अपनी दो पुस्तकों- छोटा कयामतनामा नामा और बड़ा कयामतनामा को लिखा था। वह वास्तविक स्थान, जहाँ प्राणनाथ रहे और जहाँ उन्होंने कुरान की व्याख्या और श्रीमद्भागवत महापुराण से इसकी समानताओं से सम्बंधित कार्य किये, का सही पता नहीं लगाया जा सका है।

फादर कामिल बुल्के ने मैकेंजी के संग्रह में मिले ‘चित्रकूट-महात्म्य’ का भी उल्लेख किया है।

महामुनि वाल्मीकिजी से संबंधित 

एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए। बचन सप्रेम राम मन भाए।।
कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक। आश्रम कहउँ समय सुखदायक।।

भावार्थ:- इस प्रकार मुनि श्रेष्ठ वाल्मीकिजी ने श्री रामचन्द्रजी को घर दिखाए। उनके प्रेमपूर्ण वचन श्री रामजी के मन को अच्छे लगे। फिर मुनि ने कहा- हे सूर्यकुल के स्वामी! सुनिए, अब मैं इस समय के लिए सुखदायक आश्रम कहता हूँ , निवास स्थान बतलाता हूँ।


चित्रकूट गिरि करहु निवासू। तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू।।
सैलु सुहावन कानन चारू। करि केहरि मृग बिहग बिहारू।।

भावार्थ:- आप चित्रकूट पर्वत पर निवास कीजिए, वहाँ आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है। सुहावना पर्वत है और सुंदर वन है। वह हाथी, सिंह, हिरन और पक्षियों का विहार स्थल है।


नदी पुनीत पुरान बखानी। अत्रिप्रिया निज तपबल आनी।।
सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि। जो सब पातक पोतक डाकिनि।।

भावार्थ:- वहाँ पवित्र नदी है, जिसकी पुराणों ने प्रशंसा की है और जिसको अत्रि ऋषि की पत्नी अनसुयाजी अपने तपोबल से लाई थीं। वह गंगाजी की धारा है, उसका मंदाकिनी नाम है। वह सब पाप रूपी बालकों को खा डालने के लिए डाकिनी (डायन) रूप है।


अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं। करहिं जोग जप तप तन कसहीं।।
चलहु सफल श्रम सब कर करहू। राम देहु गौरव गिरिबरहू।।

भावार्थ:- अत्रि आदि बहुत से श्रेष्ठ मुनि वहाँ निवास करते हैं, जो योग, जप और तप करते हुए शरीर को कसते हैं। हे रामजी! चलिए, सबके परिश्रम को सफल कीजिए और पर्वत श्रेष्ठ चित्रकूट को भी गौरव दीजिए।


चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ॥

 भावार्थ:- महामुनि वाल्मीकिजी ने चित्रकूट की अपरिमित महिमा बखान कर कही। तब सीताजी सहित दोनों भाइयों ने आकर श्रेष्ठ नदी मंदाकिनी में स्नान किया॥


मंदाकिनी मैय्या  से संबंधित

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू॥
लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा॥

 भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी ने कहा- लक्ष्मण! बड़ा अच्छा घाट है। अब यहीं कहीं ठहरने की व्यवस्था करो। तब लक्ष्मणजी ने पयस्विनी नदी के उत्तर के ऊँचे किनारे को देखा (और कहा कि-) इसके चारों ओर धनुष के जैसा एक नारा  फिरा हुआ है॥


नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना॥
चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी॥

भावार्थ:- नदी (मंदाकिनी) उस धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण हैं। कलियुग के समस्त पाप उसके अनेक हिंसक पशु (रूप निशाने) हैं। चित्रकूट ही मानो अचल शिकारी है, जिसका निशाना कभी चूकता नहीं और जो सामने से मारता है॥


चित्रकूट निवास से संबंधित

अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा॥
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना॥

भावार्थ:- ऐसा कहकर लक्ष्मणजी ने स्थान दिखाया। स्थान को देखकर श्री रामचन्द्रजी ने सुख पाया। जब देवताओं ने जाना कि श्री रामचन्द्रजी का मन यहाँ रम गया, तब वे देवताओं के प्रधान थवई (मकान बनाने वाले) विश्वकर्मा को साथ लेकर चले॥


कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए॥
बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला॥

भावार्थ:- सब देवता कोल-भीलों के वेष में आए और उन्होंने (दिव्य) पत्तों और घासों के सुंदर घर बना दिए। दो ऐसी सुंदर कुटिया बनाईं जिनका वर्णन नहीं हो सकता। उनमें एक बड़ी सुंदर छोटी सी थी और दूसरी बड़ी थी॥


लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत।
सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत॥

भावार्थ:- लक्ष्मणजी और जानकीजी सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी सुंदर घास-पत्तों के घर में शोभायमान हैं। मानो कामदेव मुनि का वेष धारण करके पत्नी रति और वसंत ऋतु के साथ सुशोभित हो॥


चित्रकूट आगमन से संबंधित

अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला॥
राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू॥

भावार्थ:- उस समय देवता, नाग, किन्नर और दिक्पाल चित्रकूट में आए और श्री रामचन्द्रजी ने सब किसी को प्रणाम किया। देवता नेत्रों का लाभ पाकर आनंदित हुए॥


बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू॥
करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए॥

भावार्थ:- फूलों की वर्षा करके देव समाज ने कहा- हे नाथ! आज (आपका दर्शन पाकर) हम सनाथ हो गए। फिर विनती करके उन्होंने अपने दुःसह दुःख सुनाए और (दुःखों के नाश का आश्वासन पाकर) हर्षित होकर अपने-अपने स्थानों को चले गए॥


चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए॥
आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा॥

भावार्थ:- श्री रघुनाथजी चित्रकूट में आ बसे हैं, यह समाचार सुन-सुनकर बहुत से मुनि आए। रघुकुल के चन्द्रमा श्री रामचन्द्रजी ने मुदित हुई मुनि मंडली को आते देखकर दंडवत प्रणाम किया॥


मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं॥
सिय सौमित्रि राम छबि देखहिं।साधन सकल सफल करि लेखहिं॥

भावार्थ:- मुनिगण श्री रामजी को हृदय से लगा लेते हैं और सफल होने के लिए आशीर्वाद देते हैं। वे सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी की छबि देखते हैं और अपने सारे साधनों को सफल हुआ समझते हैं॥


जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद॥

भावार्थ:- प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य सम्मान करके मुनि मंडली को विदा किया। (श्री रामचन्द्रजी के आ जाने से) वे सब अपने-अपने आश्रमों में अब स्वतंत्रता के साथ योग, जप, यज्ञ और तप करने लगे॥


चित्रकूट शुभागमन पर कोल-भीलों  द्वारा स्वागत

यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई॥
कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना॥

भावार्थ:- यह (श्री रामजी के आगमन का) समाचार जब कोल-भीलों ने पाया, तो वे ऐसे हर्षित हुए मानो नवों निधियाँ उनके घर ही पर आ गई हों। वे दोनों में कंद, मूल, फल भर-भरकर चले, मानो दरिद्र सोना लूटने चले हों॥


तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहिं मगु जाता॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई॥

भावार्थ:- उनमें से जो दोनों भाइयों को (पहले) देख चुके थे, उनसे दूसरे लोग रास्ते में जाते हुए पूछते हैं। इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी की सुंदरता कहते-सुनते सबने आकर श्री रघुनाथजी के दर्शन किए॥


करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े॥

भावार्थ:भेंट आगे रखकर वे लोग जोहार करते हैं और अत्यन्त अनुराग के साथ प्रभु को देखते हैं। वे मुग्ध हुए जहाँ के तहाँ मानो चित्र लिखे से खड़े हैं। उनके शरीर पुलकित हैं और नेत्रों में प्रेमाश्रुओं के जल की बाढ़ आ रही है॥


राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिंकर जोरी॥

भावार्थ:- श्री रामजी ने उन सबको प्रेम में मग्न जाना और प्रिय वचन कहकर सबका सम्मान किया। वे बार-बार प्रभु श्री रामचन्द्रजी को जोहार करते हुए हाथ जोड़कर विनीत वचन कहते है॥


अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय।
भाग हमारें आगमनु राउर कोसलराय॥

भावार्थ:- हे नाथ! प्रभु (आप) के चरणों का दर्शन पाकर अब हम सब सनाथ हो गए। हे कोसलराज! हमारे ही भाग्य से आपका यहाँ शुभागमन हुआ है॥


धन्य भूमि बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा॥
धन्य बिहग मृग काननचारी। सफल जनम भए तुम्हहि निहारी॥

भावार्थ:- हे नाथ! जहाँ-जहाँ आपने अपने चरण रखे हैं, वे पृथ्वी, वन, मार्ग और पहाड़ धन्य हैं, वे वन में विचरने वाले पक्षी और पशु धन्य हैं, जो आपको देखकर सफल जन्म हो गए॥


हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा॥
कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी। इहाँ सकल रितु रहब सुखारी॥

भावार्थ:- हम सब भी अपने परिवार सहित धन्य हैं, जिन्होंने नेत्र भरकर आपका दर्शन किया। आपने बड़ी अच्छी जगह विचारकर निवास किया है। यहाँ सभी ऋतुओं में आप सुखी रहिएगा॥


हम सब भाँति करब सेवकाई। करि केहरि अहि बाघ बराई॥
बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा। सब हमार प्रभु पग पग जोहा॥

भावार्थ:- हम लोग सब प्रकार से हाथी, सिंह, सर्प और बाघों से बचाकर आपकी सेवा करेंगे। हे प्रभो! यहाँ के बीहड़ वन, पहाड़, गुफाएँ और खोह (दर्रे) सब पग-पग हमारे देखे हुए हैं॥


तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब। सर निरझर जलठाउँ देखाउब॥
हम सेवक परिवार समेता। नाथ न सकुचब आयसु देता॥

भावार्थ:- हम वहाँ-वहाँ (उन-उन स्थानों में) आपको शिकार खिलाएँगे और तालाब, झरने आदि जलाशयों को दिखाएँगे। हम कुटुम्ब समेत आपके सेवक हैं। हे नाथ! इसलिए हमें आज्ञा देने में संकोच न कीजिए॥


बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन।
बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन॥

भावार्थ:- जो वेदों के वचन और मुनियों के मन को भी अगम हैं, वे करुणा के धाम प्रभु श्री रामचन्द्रजी भीलों के वचन इस तरह सुन रहे हैं, जैसे पिता बालकों के वचन सुनता है॥


रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जान निहारा॥
राम सकल बनचर तब तोषे। कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे॥

भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी को केवल प्रेम प्यारा है, जो जानने वाला हो (जानना चाहता हो), वह जान ले। तब श्री रामचन्द्रजी ने प्रेम से परिपुष्ट हुए (प्रेमपूर्ण) कोमल वचन कहकर उन सब वन में विचरण करने वाले लोगों को संतुष्ट किया॥


बिदा किए सिर नाइ सिधाए। प्रभु गुन कहत सुनत घर आए॥
एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई। बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई॥

भावार्थ:- फिर उनको विदा किया। वे सिर नवाकर चले और प्रभु के गुण कहते-सुनते घर आए। इस प्रकार देवता और मुनियों को सुख देने वाले दोनों भाई सीताजी समेत वन में निवास करने लगे॥


रघुनाथजी वन आगमन का प्रभाव

जब तें आइ रहे रघुनायकु। तब तें भयउ बनु मंगलदायकु॥
फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना। मंजु बलित बर बेलि बिताना॥

भावार्थ:- जब से श्री रघुनाथजी वन में आकर रहे तब से वन मंगलदायक हो गया। अनेक प्रकार के वृक्ष फूलते और फलते हैं और उन पर लिपटी हुई सुंदर बेलों के मंडप तने हैं॥


सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए॥
गुंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी॥

भावार्थ:- वे कल्पवृक्ष के समान स्वाभाविक ही सुंदर हैं। मानो वे देवताओं के वन (नंदन वन) को छोड़कर आए हों। भौंरों की पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर गुंजार करती हैं और सुख देने वाली शीतल, मंद, सुगंधित हवा चलती रहती है॥


नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर॥

भावार्थ:- नीलकंठ, कोयल, तोते, पपीहे, चकवे और चकोर आदि पक्षी कानों को सुख देने वाली और चित्त को चुराने वाली तरह-तरह की बोलियाँ बोलते हैं॥


करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा॥
फिरत अहेर राम छबि देखी।होहिं मुदित मृग बृंद बिसेषी॥

भावार्थ:- हाथी, सिंह, बंदर, सूअर और हिरन, ये सब वैर छोड़कर साथ-साथ विचरते हैं। शिकार के लिए फिरते हुए श्री रामचन्द्रजी की छबि को देखकर पशुओं के समूह विशेष आनंदित होते हैं॥


बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि रामबनु सकल सिहाहीं॥
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या॥

भावार्थ:- जगत में जहाँ तक (जितने) देवताओं के वन हैं, सब श्री रामजी के वन को देखकर सिहाते हैं, गंगा, सरस्वती, सूर्यकुमारी यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि धन्य (पुण्यमयी) नदियाँ,॥


सब सर सिंधु नदीं नद नाना। मंदाकिनि कर करहिं बखाना॥
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मंदर मेरु सकल सुरबासू॥

भावार्थ:- सारे तालाब, समुद्र, नदी और अनेकों नद सब मंदाकिनी की बड़ाई करते हैं। उदयाचल, अस्ताचल, कैलास, मंदराचल और सुमेरु आदि सब, जो देवताओं के रहने के स्थान हैं,॥


सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते॥
बिंधि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई॥

भावार्थ:- और हिमालय आदि जितने पर्वत हैं, सभी चित्रकूट का यश गाते हैं। विन्ध्याचल बड़ा आनंदित है, उसके मन में सुख समाता नहीं, क्योंकि उसने बिना परिश्रम ही बहुत बड़ी बड़ाई पा ली है॥


चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति।
पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति॥

भावार्थ:- चित्रकूट के पक्षी, पशु, बेल, वृक्ष, तृण-अंकुरादि की सभी जातियाँ पुण्य की राशि हैं और धन्य हैं- देवता दिन-रात ऐसा कहते हैं॥


नयनवंत रघुबरहि बिलोकी। पाइ जनम फल होहिं बिसोकी॥
परसि चरन रज अचर सुखारी। भए परम पद के अधिकारी॥

भावार्थ:- आँखों वाले जीव श्री रामचन्द्रजी को देखकर जन्म का फल पाकर शोकरहित हो जाते हैं और अचर (पर्वत, वृक्ष, भूमि, नदी आदि) भगवान की चरण रज का स्पर्श पाकर सुखी होते हैं। यों सभी परम पद (मोक्ष) के अधिकारी हो गए॥


सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन। मंगलमय अति पावन पावन॥
महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू। सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू॥

भावार्थ:- वह वन और पर्वत स्वाभाविक ही सुंदर, मंगलमय और अत्यन्त पवित्रों को भी पवित्र करने वाला है। उसकी महिमा किस प्रकार कही जाए, जहाँ सुख के समुद्र श्री रामजी ने निवास किया है॥


पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई॥
कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होहिं सहसानन॥

भावार्थ:- क्षीर सागर को त्यागकर और अयोध्या को छोड़कर जहाँ सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी आकर रहे, उस वन की जैसी परम शोभा है, उसको हजार मुख वाले जो लाख शेषजी हों तो वे भी नहीं कह सकते॥


सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं। डाबर कमठ कि मंदर लेहीं॥
सेवहिं लखनु करम मन बानी। जाइ न सीलु सनेहु बखानी॥

भावार्थ:- उसे भला, मैं किस प्रकार से वर्णन करके कह सकता हूँ। कहीं पोखरे का (क्षुद्र) कछुआ भी मंदराचल उठा सकता है? लक्ष्मणजी मन, वचन और कर्म से श्री रामचन्द्रजी की सेवा करते हैं। उनके शील और स्नेह का वर्णन नहीं किया जा सकता॥

प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। ऐसी मान्यता है, कि सभी तीर्थ और प्रयागराज प्रत्येक महीनें की अमावस्या तिथि को पयस्वनी नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आते है। अमावस्या तिथि  पर यहाँ मेला लगता है और  दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान श्री कामदगिरि की परिक्रमा और दर्शन करने के लिए आते है। परिक्रमा करने से पहले श्रद्धालु माँ मन्दाकिनी नदी में डुबकी लगाते है, और रामघाट में मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित महाराजाधिराज श्री मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी जी की पूजा अर्चना करते है।

इसके अलावा यहाँ पर मकर सक्रांति, रामनवमी, सोमवती अमावस्या, महाशिवरात्रि , श्री कृष्णजन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा, दीपावली इत्यादि त्योहारों पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन बड़ी ही धूम-धाम के साथ किया जाता है।

:: रेल मार्ग सुविधाएं ::

मुख्य रेलवे स्टेशन कर्वी में स्थित है, यह रेलवे ट्रैक के साथ सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

चित्रकूट से मुख्य रेल मार्ग निम्नानुसार है:

  • चित्रकूट से हज़रत निजामुद्दीन( वाया बाँदा )
  • चित्रकूट से लखनऊ  तक (वाया बाँदा)
  • चित्रकूट से इलाहाबाद, मुगल सराय, हावड़ा (वाया मानिकपुर )
  • चित्रकूट से वाराणसी (वाया मानिकपुर)
  • चित्रकूट से कुर्ला (मुंबई) (वाया झाँसी)

  :: सड़क मार्ग सुविधाएं ::

चित्रकूट जिला राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य सड़क मार्ग सहित सभी प्रसिद्ध शहरों से जुड़ा हुआ है।

चित्रकूट से मुख्य सड़क मार्ग निम्नानुसार है:

  • चित्रकूट से लेकर मिर्जापुर तक (वाया इलाहाबाद)
  • चित्रकूट से बांदा, कानपुर और लखनऊ तक
  • चित्रकूट से राजापुर तक
  • चित्रकोट से  सागर तक (वाया महोबा)
  • चित्रकूट से पन्ना तक(वाया अत्तार्रा, नरैनी)

:: वायु मार्ग  सुविधाएं ::

इलाहाबाद में बमरूली हवाई अड्डे निकटतम हवाई अड्डा है, 106.1 किमी। चित्रकूट से दूर अगला खजुराहो हवाई अड्डा है जो चित्रकूट से 167.7 किमी दूर है। दोनों हवाई अड्डों में दिल्ली के लिए दैनिक उड़ान सेवाएं हैं ।

क्रम संख्या होटल का नाम पता दूरभाष कक्षों की संख्या किराया
1 पर्यटक आवास गृह,चित्रकूट सीतापुर, चित्रकूट 05198298183 AC(28) Non-AC(60) AC (1400,1600,1800,3500) Non AC(250) HALL(4500)
2 श्री जी भवन सीतापुर ,चित्रकूट 7523914101 31 AC/2015 , HALL/21000
3 चन्द्रप्रभा भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9450224535 13 Non AC/400
4 राममनोहर पटेल धर्मशाला सीतापुर ,चित्रकूट 8874552080 16 Non AC/400
5 मन्दाकिनी सत्संग भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8090775166 19 AC/1250, HALL/51000
6 बिन्दीराम होटल दिव्यांगविश्वविद्यालय के पास 6392353523 31 AC/3500
7 आनंद रिसोर्ट  दिव्यांगविश्वविद्यालय के पास 9807559740 22 AC/2000, Non AC HALL/800
8 कृष्णकुन्ज सत्संग भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9415975838 11 AC/800, Non AC/400
9 चित्रकूट गेस्ट हाउस सीतापुर ,चित्रकूट 9795088429 30 HALL/2000, Non AC/400
10 बिन्दी स्मृति भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8853447137 8
11 श्री जगदीश भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9919537100 8 AC/1000, Non AC/500
12 रामायण मेला सीतापुर ,चित्रकूट 6394904236 13 HALL/1000, Non AC/250
13 श्यामा भवन सीतापुर ,चित्रकूट 7767847875 4 AC/8000, Non AC/400
14 स्वर्णिमा होटल सीतापुर ,चित्रकूट 9839026254 10 AC/1200,Non AC/800, HALL/2100
15 जैपुरिया भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8004814901,7458030210
16 भागवत धाम रानीपुर, चित्रकूट 16 AC/1000, Non AC/800
17 राधिका भवन सीतापुर ,चित्रकूट 8004236399 22
18 वनवासी भवन सीतापुर ,चित्रकूट 9721674008 17 AC/800, Non AC/400
19 रामा होटल सीतापुर ,चित्रकूट 9918159696 11 AC/1000, Non AC/700
20 महेश्वरी भवन रामघाट चित्रकूट 9044161776 8 Non AC/300
21 कृष्ण कुरीर रामघाट चित्रकूट 9450224389 8 Non AC/400
22 दिव्या होटल रामघाट चित्रकूट 9918166809 8 Non AC/500, HALL/500
23 विनोद लाॅज रामघाट चित्रकूट 7054990955 8 AC/1000, Non AC/600
24 श्री सुरेन्द्र भवन रामघाट चित्रकूट 6264289798 32
25 सत्संग भवन रामघाट चित्रकूट 9335531217 8
26 राम भवन  रामघाट चित्रकूट 9918139696 3 AC/1500, Non AC/1200
27 श्री रामजी विश्रामगृह रामघाट चित्रकूट 9452759117 3
28 सीता भवन  रामघाट चित्रकूट 9918642062 11 AC/900, Non AC/1200
29 अग्रसेन भवन रामघाट चित्रकूट 9451917259 7 Non AC/500
30 आशा भवन रामघाट चित्रकूट 9935766194 7
31 दिव्या श्री भरत सत्संग भवन रामघाट चित्रकूट 9451433665 5 Non AC/500, HALL/1500
32 श्री गणेश भवन रामघाट चित्रकूट 9793422962 13 Non AC/400, HALL/2000
33 लक्ष्मी भवन   रामघाट चित्रकूट 9179303844 17 Non AC/250, HALL/900
34 विजय राघव सदन  रामघाट चित्रकूट 9793428736 5 Non AC/550
35 होटल पुष्पारेजेंसि रामघाट चित्रकूट 9450223090,9565009520 19 AC/800, Non AC/500
Kamadgiri

कामतानाथ मंदिर / कामदगिरी

Kalinjar fort

कालिंजर

राम घाट

Ramghat

भरत कूप

Bharatkoop


भरत मिलाप मंदिर

Bharatmilap

गणेश बाग

Ganeshbagh

हनुमान धारा

Hanumandhara

गुप्त गोदावरी

Guptgodavri

सती अनुसूया आश्रम

Satianusuya

राम दर्शन

Ramdarshan

स्फटिक शिला

Sphatikshila

क्रम संख्या मंदिर/पर्यटकस्थल का नाम पता दूरभाष मंदिर खुलने/बन्द होने का समय
1 मत्यगजेन्द्रनाथ मंदिर, शिव मंदिर रामघाट, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
2 कामदगिरि मंदिर चित्रकूट 945366803 प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
3 भरतमिलाप मंदिर परिक्रमा मार्ग चित्रकूट 9792538159 प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
4 लक्ष्मण पहाड़ी मंदिर परिक्रमामार्ग, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
5 मड़फा मंदिर, शिव मंदिर मानपुर, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
6 बन्धोइन माता मंदिर बन्धोइन, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
7 सोमनाथचर मंदिर शिव मंदिर चर, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
8 बरहा के हनुमानजी मंदिर परिक्रमामार्ग, चित्रकूट 6387246436 प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
9 नांदीन के हनुमानजी मंदिर चित्रकूट 9005189615 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
10 भरतकूप मंदिर भरतकूप, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
11 झारखंडी माता मंदिर तरांैहा, चित्रकूट प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
12 कालका देवी मंदिर सीतापुर ,चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
13 बूढ़े हनुमानजी मंदिर रामघाट, चित्रकूट प्रातः 5ः00 से रात्रि 9ः00 तक
14 लैनाबाबा हनुमान मंदिर/श्री रामजीका मंदिर शिवरामपुर, चित्रकूट 9580212821, 8400603057 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
15 संकटमोचन मंदिर/श्री रामजी मंदिर राजापुर, चित्रकूट 9621079004 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
16 दक्षिणमुखी हनुमानजी मंदिर परिक्रमामार्ग जलेबीगली 9651560415 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
17 असावरी माता मंदिर लालापुर, चित्रकूट 9453200592 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
18 डण्डहरीया हनुमानजी मंदिर हरिहरपुर, चित्रकूट 6394561329 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
19 हनुमान धारा मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
20 सतीअनसूइया माता मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
21 गुप्तगोदावरी मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक
22 रामदरबार मंदिर चित्रकूट, म0प्र0 प्रातः 7ः00 से रात्रि 8ः00 तक